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________________ श्रेणिक पुराणम् १०५ आकर वे उनकी इस प्रकार स्तुति करने लगे हे दिव्य पुरुष! हे पुण्यात्मन् ! हे समस्त जीवों पर दया करनेवाले कुमार ! यह हमारा भयंकर विघ्न आपकी कृपा से शांत हुआ है। आपके सर्वोत्तम बुद्धिबल से ही इस समय हमारी रक्षा हुई है। आपके प्रसाद से ही हम इस समय आनंद का अनुभव कर रहे हैं। आपने हमें अपना समझ जीवनदान दिया है। यदि महाराज की आज्ञा का पालन नहीं होता तो न मालूम महाराज हमारी क्या दुर्दशा करते-हमें क्या दण्ड देते ? हे कृपानाथ कुमार! हम आपके इस उपकार के बदले में क्या करें? हम तो सर्वथा असमर्थ हैं। और आप समस्त लोक के बिना कारण बंधु हैं। हे कुमार! जैसी आपके चित्त में दया है। संसार में वैसी दया कहीं-नहीं जान पड़ती। हे महोदय ! आप संसार में अलौकिक सज्जन हैं। आप मेघ के समान हैं। क्योंकि जिस समय मेघ परोपकारी, स्नेह (जल) युक्त, आर्द्र, एवं उन्नत होते हैं। उसी प्रकार आप भी परोपकारी हैं। समस्त जनों पर प्रीति के करनेवाले हैं। आपका भी चित्त दया से भीगा हुआ है। और आप जगत में पवित्र हैं। हे हमारे प्राणदाता कुमार ! आपकी सेवा में हमारा यह सविनय निवेदन है। जब तक राजा का कोप शांत न हो, महाराज हमारे पर संतुष्ट न हों आप इस नगर को ही सुशोभित करें। आप तब तक इस नगर से कदापि न जाएँ। यदि आप यहाँ से चले जायेंगे तो महाराज हमें कदापि यहाँ नहीं रहने देंगे॥६०-६६॥ इतिसंप्रार्थितः सोऽपि तथेति प्रतिपन्नवान् । प्रायेण स्वाजनं चित्तं परोपकृतये रतम् ॥ ६७ ॥ अथ स श्रेणिको भूपः संप्रापदोषमुत्तमम्।। कथं निःकाशनं कुर्मो विप्राणां बुद्धिशालिनाम् ॥ ६८ ।। वचो हरं पुनः राजाप्रेषयामास वाडवम्।। स समेत्येति सद्वाचो जगाद विनयान्वितः ॥ ६६ ॥ कर्पूरवापिका विप्रा नेतव्या राजमंदिरम् । इति राज्ञश्च निर्देशो भवतामन्यथा हतिः ॥ ७० ॥ इधर तो नन्दिनाथ एवं अन्य विप्रों की इस प्रार्थना ने कुमार अभय के चित्त पर प्रभाव जमा दिया उन्हें जबरन प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ी। और ब्राह्मणों पर दया कर नन्दिग्राम में कुछ दिन ठहरना भी निश्चित कर लिया। उधर जिस समय महाराज ने बकरे को ज्यों-का-त्यों देखा। वे गहरी चिंता में पड़ गये। अपनी प्रयत्न की सफलता न देख उन्हें अति क्रोध आ गया। वे सोचने लगे-जब नन्दिग्राम में ब्राह्मण इतने बुद्धिमान हैं। तब उनको कैसे नन्दिग्राम से निकाला जाय? तथा क्षणेक ऐसा सोचकर शीघ्र ही उन्होंने फिर एक दूत बुलाया, और उससे यह कहातुम अभी नन्दिग्राम जाओ। और वहाँ के निवासी ब्राह्मणों से कहो कि महाराज ने यह आज्ञा दी है कि नन्दिग्राम निवासी ब्राह्मण शीघ्र एक बावड़ी राजगृह नगर पहुँचा दें। नहीं तो उनको कष्ट का सामना करना पड़ेगा ॥६७-७०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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