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________________ श्रेणिक पुराणम् गहमागत्य काचिच्च पुनर्याति गुणाकुला। अस्थिरांह्रिः करोत्क्षेपात्काचिद्वावत्यनुप्रभुं ॥१०१॥ विलपंती विमुच्याशु स्थूलां च शकटावहाम् । तरुण्यश्चंचला यांति स्तनभारोद्धरा अपि ॥१०२॥ तद्विभूति समावीक्ष्य वदंति वरयोषितः । धन्यास्य जननी लोके ययायं जठरे धृतः ॥१०३॥ यस्याः स्तन्यं पपौ सोऽयं सा धन्या भुवने सखि । अन्यच्च श्रूयते मित्रे पुरे वेणातटे वरे ॥१०४॥ इंद्रदत्तस्य संजातां नंदश्रीं परिणीतवान् । अयं पुण्यफलालीढः सा धन्या योषितां गणे ॥१०॥ ययास्यांगेन संयोगो भोगोद्दीपनतत्परः । लेभे हस्तावलेपश्च सा योषिद्धन्यतां गता ॥१०६॥ अन्यच्च श्रूयते मित्रेऽस्ययोगाच्चतया पुनः । तनुजो जनितानंदो लब्धो रूपविशारदः ॥१०७।। इत्यादि शुभशंसां स लेभे नारीनराच्छुभात् । जयारवादिकान्नादान्नंदिताऽखिल सज्जनाः ॥१०८॥ ततः क्रमात्पुरं सर्वं केतुबद्धं सतोरणम् । समीक्ष्य प्राप्तवान् रम्यं सुंदरं राजमंदिरं ॥१०६।। इधर राजा चलाती को यह पता लगा कि अब श्रेणिक यहाँ आ गये हैं। उनके साथ विशाल सेना है, समस्त देशवासी और नगरवासी मनुष्य भी कुमार श्रेणिक के ही अनुयायी हो गये हैं। मारे भय के वह तो काँपने लगा तथा अब मैं लड़कर कुमार श्रेणिक से विजय नहीं पा सकता यह भली प्रकार सोच-विचार अपनी कुछ संपत्ति लेकर किसी किले में जा छिपा। उधर सूर्य के समान प्रतापी, बड़े-बड़े सामंतों से सेवित पुण्यात्मा जिनके ऊपर क्षीर समुद्र के समान सफेद चमर ढुल रहे हैं, जिनका यश चारों ओर बंदीजन गान कर रहे हैं, कुमार श्रेणिक ने बड़े ठाट-बाट से नगर में प्रवेश किया। नगर में घुसते ही बाजों के गंभीर शब्द होने लगे। बाजों की आवाज सुन जैसे समुद्र से तरंग बाहर निकलती हैं, नगर की स्त्रियाँ महाराज के देखने के लिए घरों से निकलकर भागीं। कोई स्त्री अपने स्वामी को चौके में ही बैठा छोड़ उसे बिना भोजन परोसे ही कुमार को देखने के लिए घर से भागी। कोई स्त्री मट्ठा विलोड़ रही थी, कुमार के दर्शन की लालसा से उसने मट्ठा बिलोड़ना छोड़ दिया। कोई-कोई तो कुमार को देखने में इतनी लालायित हो गई कि शृंगारकरते समय उसने ललाट का तिलक आँखों में लगा लिया और आँखों का काजल ललाट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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