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________________ ८६ अमरसेणचरिउ महु मज्जमंस परती-बिलासि । एह फलु संपज्जइ नरयवासि || १४॥ कक्कस - सिल- उपरि जेम वत्थु । अष्फालिय सेवइ तिम अवस्थु || १५ || पाराजिम किज्जइ खंडखंड । बलि पाव भोगनसि मिलइ पिंड ||१६|| चउगइ भमंत मइ तिक्खतिक्ख । मिच्छत्तमोहि सहियाजि दुक्ख ||१७|| ते समरवि समरवि मनहमाहि । करि सुगुरु वयणु मनपडि सिवाहि ||१८|| घत्ता इम जीउ णि चउगइ, जोणियले भमइ वि मोहासत्तऊ । जि मज्झ दुवचोवाणहउ, बहु पज्जाय वि लितु मुयंत ॥ १-१४ ॥ } [ १-१६ ] 1 जीविउ-धण- जुठवण अथिरु जाणि । अंजलि-जल- उप्पम कर वखाणि ॥ १ ॥ खिणि खिणि तुट्टइ तणवि करंत । इकि हसइ इक्कि दीसहि रुयंत ॥२॥ खणि मित्तआइ-पहु-विसइ-कालु | धम्महं वि लवंतं आलमालु ॥३॥ जं कल्लि करंतर करि सु अज्जु । लब्भइ कि न लब्भइ कल्लि कज्जु ॥४॥ पिय-माय- पुत्त-माया झमालि । जिउ पडिउ कुडंवा तणइ जालि ॥५॥ न वि करतउ संकइ किमइ पापु । पुणु दुक्ख सहइ एकलउ आपु ॥६॥ लब्भइ नहु वसिवा जाणि गेहि । हियडाम न बंधसितिणिस गेहि ॥७॥ उट्ठाय चितिहि वसइ जेम । परदेसिउ पंथिउ वसइ तेम ॥८॥ उगिसइ दिवस सो इक्क अंधु । निक्कलसि जेणि वडियारि कंधि ॥२॥ वेहाघ झाडि पहु वि सिमसाणि । सरिसउ न कॅपि परमत्थ जाणि ॥१०॥ विणु मुज्झ केम होसह कुटुंब । इणि चित म करि धम्महं विलंबु ॥ ११॥ दिण इक्क दुण्णि इक घडिय रोड़ | खाइस्सइ पीसइ वलिसहू कोइ ॥ १२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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