SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरसेणचरिउ संकोइय सयलउ अंगवंग । अहमुख बहु असुई पूयसंग ।।१५।। गन्भवासि नरय सय दुक्ख हुतु । जिउ वसइ अहिउ नवमास संतु ।।१६।। पडिलोम तहग्गिहि पर जलंति । समकालसुईचंपे वि दिति ॥१७॥ जा वेयण तह अट्ठग्गुणीय । जम्मक्खणि गंत गुणी भणीय ॥१८॥ घत्ता इय नरयहि दुक्खु समो सहि वि, कट्टि कट्ठि तहि णीसरए। अइ पावि गहियउ मुक्खु जिउ, पुणु तिरियत्तणि संपडए ।।१-१४॥ [१-१५ ] तिरियत्तणि सीयातवु सहति । तिसु-भुक्ख-पमुख परवसि पडंति ।।१।। गलकंवलच्छेयक संकुसार । निल्लंच्छण-कंधिहिं पुट्ठि-भार ।।२।। इग-तिन्नि अयर तित्तीस-जाणि । जिउ सहइ नरइवहुदुह अयाणि ।।३।। एगति सोउ एगति तापु । तहं वज्जतुड-डंसह वियापु ॥४॥ घण-घायघोर-मुग्गर-पहार । अवरुप्पर तिव्वकुमार-मार ॥५॥ करवित्तिहिं किज्जइ दुण्णिखंड । कुम्भोकडाह वेयण-पचंड ॥६॥ पापण जिम किज्जइ चुन्न-चुन्न । सूली पोइज्जइ अकयपुन्न ।।७।। भेदिज्जइ गइवरदंतेघाय । अंवरि ओच्छालइ धरवि पाय ||८|| सेवंति तत्थ असिपत्तच्छाहं । पवणिहि डझंतहं पत्त साह ।।९।। नरयाण पडइ तिणि च्छिन्नभिन्न । कर अंगुलि नासा अहर-कन्न ।।१०।। वेसानर वन्नी पुत्तलीय । आलिंगण दिज्जइ वलिबलीय ।।११।। गालियकथोरु जिम परजलंत । पाइज्जइ जलमुह मोडयंत ।।१२।। तहं अंगमंसुकप्प वि सरोसु । घालिज्जइ तहं मुह कह वि दोसु ।।१३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy