SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरसेणचरिउ चउ दिसिहि जत्थ विसालु सालु । सोहइ रयणिहि विहुणिय तमालु ।।१४।।। परिहा जहिं संठिय पवर भाइ । विसहरि दोहस्थिय कुडिलभाई ॥१५।। सइ चित्तुव परपुरिसह अलंघु । गंभीर सुथिर वुहमइ महाघु ॥१६।। हि सोहइ मढदेउलविहारु । चच्चर चउक्कतोरण सुसारु ॥१७॥ वेसायण तुल्लई जहिं वणाई । पहि लग्गइ तिलयंजण वराई ।।१८।। मत्तावारणई वि राइयाई । सोहंति जत्थ वर गोउराई ।।१९।। जहिं संति मणोहरु रायमग्गु । तंवोलरंगरंगिय धरग्गु ।।२०।। घत्ता इय पुरह पहा णउं, विणयसयाणउं, परधनु-हरणे पंगुमहि । पर पियद संघउ, पर कह गुंगउ उ वंदिय जण-दाहिं ।।१-१२।। [१-१३ ] णामें अरिमद्दणु णिउ पयंडु । जि अइवलराय लियउ दंड ॥१॥ तहु पट्टमहादे स्वखाणि । पाडलगइ गमणिय अमियवाणि ॥२॥ णामें देवलदे सुहणिहाणि । जिणगुरुपयभत्तिय सीलखाणि ॥३॥ णिव-सुविह मंति मतित्थजाणु । णियसेवय पुरयण महि पहाणु ।।४।। तहु अभयंकरो वि विवहारी। णिवसइ रिद्धिसहिउ सुयधारी ।।५।। पर-उवयारो-सम्माइट्ठी । आराहइ णियहिय परमिट्ठी ॥६॥ तं भामिणि कुसला वइयसुच्छ । जिणधम्मासत्तिय चत्तमिच्छ ।।७।। तं गिहि अच्छहि वे कम्मकरा । धण्णंकर-पुण्णंकरु-भायवर ॥८॥ गरुवउ गिहकम्म करेइ तहिं । लहुवउ धणरक्खिय उववणेहिं ।।९।। विण्णि वि विणयंकर सलिलचित्त । अभयंकर-सेट्ठिहि अश्वभत्त ।।१०।। सुहि अच्छहि वणिघर हियसचित्त । विण्णि वि वंधव तह करहि वत्त ।।११।। इह पुन्नपाव-अंतरु वरिठ्ठ । एयइ सुहि एयइ सहहि कठ्ठ ॥१२॥ एयइ वि रंक भूवइ वि एक्क । भोयई भुंहिं रइसुह णिसंक ।।१३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy