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________________ ७८ अमरसेणचरिउ मंजीरय- रवेण । णच्वंति मोर पहसियसिरेण ॥ ११॥ 1 संघणाई ॥ १२ ॥ मंथाणइ जहि संति समिद्धइं पट्टणाई | मढदेव विहारइ घत्ता जहि सारि वल्लि केयाहि, अइसुकुमारहि, गुमगुमंतच्छप्पयसरहि । कोहि भयभीर्याह, रक्खिय हलिणिहि, झंपे- विणु णीलंसुर्याह ॥ १-११॥ [ १-१२ ] बिहरेहि-भंगु । सारिक्खु मारि मउगयहं वग्गु ॥१॥ जहि ॥२॥ ॥३॥ छत्तंसु-दंडु हरिसुच्छिदु (पुर) दीसंति तहि । करपीडणु- पाणिगगहणु मलित्तणु जहि मुणिवरगत्तहि । वयतवनियमशीलगुण-जुत्तहि डिह पुत्तियाहं जहं मग्गणु । किविणत्तणु महयालहि णिवसुणु ॥४॥ 'पक्खवाउ जहि वय-संधार्याह । जत्तसुलोहु खग्गमुहरायहं ॥५॥ कलह ण वर जहं रमणियसंगहि । पियविओउ जहं णहच्छेयं तहिं ॥ ६ ॥ गहणु जत्थ पुष्णिमससिमितह | माणभंगु जहिं पर अणुरतहिं ॥७॥ णिग्गुणत्तु जहि सुरवइचापछि | कढिणत्तणु जहि पउमिणि थणर्याह ॥८॥ णउ सत्तविसण महि इक्कु कोइ । वज्जरइ जिणेस रुपरमजोइ 11811 इह लयपसिद्ध पुर वरिट्ठ । उसब्भपुरु णामें सुरहइट्ठ ||१०|| वहु विभवसमिद्धउ वरपवित्तु । कइयण सद्दत्यह सोहदित्तु || ११ || சு सुरहनिवासह सोहदितु । तं सुरहं गेह-उप्पम हरंतु || १२|| णं सम्मायउ सुरवइहि पुरु । णं महि पउमिणि संपत्तु वरु || १३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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