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________________ अमरसेणचरिउ ते सोय धण्ण गुणगण-सुणं ति । ते णयण धण्ण तव जुइणि यति ॥९॥ सा रसणा तुव गुणलोललुलइ । सो साहु इत्थु तुव पडि चलइ ॥१०॥ तं वित्तु वि तुव पयपुज्जलग्गु । तुहुं णिवसहि तं हियवउ समग्गु ॥११॥ तुव णाणकिरणु उज्जोयएण । णट्ठ वि मिच्छय कोसियसएण ॥१२॥ तुहु परमप्पउमहु पउ वि देहिं । महु दुग्गइ-पडतइ-अवहरेहि ॥१३॥ इय थुइ विरइवि ललियक्खरेहिं । जो ण वि विद्धउ वम्महं सरेहिं ॥१४॥ घत्ता ति पयाहिण देप्पिणु, भत्तिकरेप्पिणु, वंदिउ जिणवरु-णाण-मउं । गोयम-पमुहजईसर, वंदि विहयसर, णर-कोट्टम्मि वइट्ठउ ॥१-१०॥ [ १-११] तं जइयहं सावय सुणिउं धम्मु । जें लब्भइ सुरणरसिवहं गम्मु ॥१॥ पुणु अवसरु पाइ वि णिववरेण । पुच्छिउ सम्मइ ललियक्खरेण ॥२॥ गोवालवाल जो जायहीण । किम गउ सुरलोय वि भणु पवीण ॥३॥ धण्णंकरु णामें इय सुणेवि । वीराणई गोयमु भणइ सोवि ॥४॥ हो राणा णिसुहिं सावहणु । जंवूदीउ वि दीवहं पहाणु ॥५॥ तहु मज्झि वि कणयायलु सुहाई। विहि भूमाणे किउ दंडुणाई ॥६॥ तहु दाहिणदिसि भरहंक वरिसु । सुरणरविज्जाहरजणियहरिसु ॥७॥ नहिं जयरइं संति मणोहराई। पुण्णायणायतरुवरघणाइं ॥८॥ जहिं कमलिणि हंसहि मंडियाई । सोहंत णिरंतर सर-वराई ॥९॥ हि गोउल सोहहि गोहणाई । सर सोहहि सियवत्तय घणाई ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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