SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ अमरसेणचरिउ समसरणु आउ महावीरतित्थु । तं अइसइउववणु फलिउ सुत्थु ॥१२॥ णिज्जल-पएस भयभस जलजुत्त । वणवाले जोइ वि रहसचित्त ॥१३॥ तहं लेवि विफुल्लफल वर पवित्त । घरि णिवइ वि अग्गइ कहइ वत्त ॥१४॥ भो सुणिइ लेस रायाहिराय । विपुल द्दिहि वीर वि सह समाय ॥१५॥ तं सुणि वि राउ संतुट्ठ तहु । दिण्णई वहु वत्थाहरण लहु ॥१६॥ उट्ठिउ सिंहासण रहसजुत्तु । सिरि वोरजिणेदहं पायभत्तु ॥१७॥ पयसत्तजाइं जं दिसहि जिणु । परमेसरु पणविउ णाणकिरणु ॥१८॥ वंदिउ परोखि सेणिय णिवेण । आणंदभेरि दावियखणेण ॥१९॥ तं सद्दे पुरयणु मिलिउ शत्ति । जिणवंदण अच्चण जायभत्ति ॥२०॥ चेलणसमेउ गउ चडि वि राउ । गउ समवसरण जह वीयराउ ॥२१॥ ओयरि वि गयंदहं पियस जुत्तु । समसरणि पइट्ठउ जिणुथुणंतु ॥२२॥ घत्ता संबेयाउरुराउ, स्वजलोह तिसायउ । णामोचार कुणंतु, पभणई इयह यमायउ ॥१-९॥ [१-१०] जय कम्मघणाघण चंडपवण । जय मयणदाह-उल्हवणघण ॥१॥ जय विसय-वि-सय वीसय-विसार । जय ण वि माणिय संसार-सार ॥२॥ जय सोलहवण्ण सुवण्ण-मुत्ति । जयमारिय-भव जाणिय भवित्ति ॥३॥ जय जोयण-गामिणि मगणवाणि । जय अंगदित्ति जिय सुज्जखाणि ॥४॥ जय जय सोयविच्छ-समलंकिय । जयतिच्छत्त चमरोह ज संकिय ॥५॥ जय पुपफविट्ठि-पाडिय वि सुमण । जय धम्मचक्क हिय कुगइगमण - गंधोयविट्टि णिच्चं पडंति । जय सुरणरविसईस वि णमंति ॥७॥ ते पय) धण्ण वि तुवतिथि जति। ते पाणि सहल पूया-रयंति ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy