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अमरसैणचरिउ
भो अइरवालकुलकमलसर । वुहयण-जणाण-मण-आसपूर ॥८॥ जिणधम्म-धुरंधरु गुणणिकेय । जसपूर दिसंतर कियस सेय ॥९॥ चउर्धारय वि महणासुय सुर्णेहिं । कलिकालु पयलु णियमणि धरेहिं ॥१०॥ दुज्जण अवियट्ट वि दोसगाहि । वड्ढंति पउर पुणु पुहइ माहि ॥११॥ गड सुकइत्तणि पुणु वद्धगाहु । णिय हियइ धरेप्पिणु पासणाहु ॥१२॥ सत्थत्थकुसललइरसहभरिउ ।सिरि अमरवइरसेणाहु वि चरिउ ॥१३॥ तउ वंसु गरिट्टउ पुहइ मज्झि । णं आइणाह हीणहं दुसज्झि ॥१४॥ जहं जायपुरिसवर तवहं धारि । वरसोहमल्ल पमुहाइसारि ॥१५॥
घत्ता
तं वयणु सुणेप्पिणु, मणिपुलएविणु, अक्खइ देवराजु वुहहो । भो माणिक्क पंडिय, सील अखंडिय, वयणु एकु महु सुणहि लहु ॥६॥
[१-७ ] णिय गेहि उवण्णउ कप्पविक्खु । तं फलु को णहु बंच्छइ ससुक्खु ॥१॥ पुण्णेण पत्तु जइ कामधेणु । को णिस्सारइ पुणु वि गयरेणु ॥२॥ तहं पई किउ महु पुणु सई पसाउ । महु जम्मु सहलु भो अज्जजाउ ॥३॥ महु धण्णु जम्मु परिसउ चित्तु । कइयण-गुण दुल्लहु जेण पत्तु ॥४॥ वहु जीणि अणंताणंतकालु । भवि भमइ जीउ मोहेण बालु ॥५॥ कहमवि पावइ तारुण्णभाउ । वम्महं वसेण सो वइरभाउ ॥६॥ णवि जाणइ जुक्ताजुत्त भेउ । णउ सत्थु ण गुरु अरहंतु-देउ ।।७॥ धावइ दहदिहि दविणत्ति-खिष्णु । णउ भावइ चेयणु परहभिण्णु ॥८॥ लोहें बद्धउ अलियउ रसंतु । परधणु परजुवई मणरसंतु ॥९॥ मिच्छिन्तु वि समरसपाणतित्तु । गउ कहमवि जिणवरधरमु पत्तु ॥१०॥
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