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________________ अमर सेणचरिउ उल्लेख नहीं किया है। पुरुषों के आभूषणों में सिर पर पहिना जाने वाले मुकुट, हाथों के कंकण (कड़ा), कानों के कुण्डल, कटि प्रदेश की मेखला और पैरों के बजनेवाले नूपुरों का उल्लेख करते हुए बताया है कि इनका प्रयोग राजघराने के लोग करते थे (५।१८।४-५) । काव्योपकरण ४० रस, अलंकार, गुण-दोष आदि काव्य के उपकरण हैं । प्रस्तुत काव्य में इन उपकरणों का अनायास ही प्रयोग हुआ है । रस : कवि ने ऐसी घटनाओं का नियोजन किया है जिनमें काव्यात्मक रसों का सुन्दर उल्लेख हुआ है । काव्य में शृंगार आदि नौ और वात्सल्य सहित दस रस माने गये हैं । प्रस्तुत काव्य में निम्न रसों के उल्लेख प्राप्त हैं शृंगार रस : प्रस्तुत काव्य के नगर, वन और नर-नारी के सौन्दर्य चित्रण में शृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है । इस सन्दर्भ में द्रष्टव्य है महणा की पत्नी के गुणात्मक सौन्दर्य का उल्लेख करने वाली निम्न पंक्तियाँ तं पणइणि पणइ - णिवद्ध देह । णामें खेमाही पियसणेह || सुरसिंधुर - गइ सइवइ वि लील । परिवारहु-पोसणु सुद्धसील || र-रयहं णं उप्पत्तिखाणि । जा वीणा इव कलयंठि-वाणि ॥ सोहग्गरूव चेलणिय दिट्ठ । सिरि रामहु-सीया जिह वरिट्ठ ॥ [ १1५1१-४] करुण रस : यह इष्ट वियोग जनित अवस्था में होता है । अपने पुत्र राजा के द्वारा मरवाये जाने के समाचार ज्ञात करके रानी विजयादेवी के विलाप प्रसंग में इस रस का कवि ने सुन्दर चित्रण विजयदि रोवइ भुव हसोय । हा णरवइ किं णउ याणिउ जुत्ताजुत्त देव । दुट्ठि सुणि णिद्दोस अकज्जे किरण-तेय | माराविय हा हा इ वदइय कियउ तुज्झ । इव मणह तह रुयणु सुणेपिपणु अइस दुक्खि रोवंति भव्व Jain Education International किया है किउ पइइ हैय ॥ वयणइगि वहसेव ॥ रणि-अजेय || णंदण मणोरह पुज्न तुज्झु ॥ तिरयंच-पक्खि ॥। [ २९/१-५ ] यहाँ विजयादेवो का शोक करना स्थायीभाव है । मृत पुत्र आलम्बन तथा पुत्रों के मरण में कारण स्वरूप राजा ( देवदत्त ) और रानी (देवश्री) उद्दीपन विभाव हैं। रानी विजयादेवी का रुदन प्रलाप, हाहाकार करना, राजा ( देवदत्त ) की निन्दा करना आदि अनुभाव हैं । मोह, " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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