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________________ प्रस्तावना दोनों पूर्वभव में दो भाई थे। ये तप त्यागकर राज्य करने लगे थे। आयु के अन्त में वे आर्तध्यान से मरे और मरकर स्त्री पर्याय में भटकने के पश्चात् चन्द्रोदय ( भरत का जीव ) कूलंकर नाम का राजपत्र और सूर्योदय ( त्रिलोकमण्डन हाथी का जीव ) विश्रतास मंत्री का श्रुति नामक पुत्र हुआ । आयु के अन्त में मरकर तिर्यंच हुए पश्चात् राजगृह नगर में विनोद और रमन नाम से ब्राह्मण के घर जन्मे । इस योनि के बाद दोनों हरिण दम्पति हुए। हिरणो भोल द्वारा मारी गयी और रमन के जीव हरिण को एक मन्दिर के निकट रहने का योग मिला। वह जिन-पूजा के भावपूर्वक मरा और स्वर्ग गया तथा विनोद का जीव तिर्यंच योनि से छूटकर धनद नाम का वैश्य हुआ । स्वर्ग से चयकर रमन का जीव इसका भूषण नाम का पुत्र हुआ। विषयों से विरक्त होकर वह सर्प-दंश से मरा और माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ । स्वर्ग से चयकर भोगभूमि में जन्मा और पुनः स्वर्ग गया तथा पुनः स्वर्ग से चयकर अभिराम नाम का चक्रवर्ती हुआ । इस पर्याय में इसने चार हजार कन्याओं को विवाहा था। विवाह करके वह उनमें आसक्त नहीं हुआ। उसने श्रावक के व्रत लिये। अन्त में यह शद्ध भावों से मरा और ब्रह्म स्वर्ग में देव हुआ । इसका पिता धनद वैश्य अनेक योनियों में भटकने के पश्चात् पोदनपुर में अग्निमुख ब्राह्मण का मदुमति नामक पुत्र हुआ। इसने वेश्यावृत्ति में धन गँवाकर चोरी की। एक दिन यह चन्द्रपुरी नगरी के राजमहल में चोरी करने गया । वहाँ इसने राजा को रानी से यह कहते हुए सुना कि प्रातः वह तप ग्रहण कर लेगा और रानी को यह कहते हुए सुना कि राजा के तप ग्रहण करने पर वह भी तप ग्रहण कर लेगी । मदुमति ने राजा और रानी के वार्तालाप को सुनकर संसार को निस्सार जाना और उसने भी महाव्रत धारण करने का निश्चय किया। प्रातः तीनों महाव्रती हो गये । मृदुमति मुनि होकर विहार करने लगा। हस्तिनापुर के निकट गुणनिधि नामक चारण मुनि विराजमान थे । वे मासोपवासी महान् तपस्वी थे । अपना योग पूर्ण करके वे तो अन्यत्र विहार कर गये और मदुमति विहार करता हुआ वहाँ आया । इसके चर्या के लिए नगर में आने पर नगरवासियों ने इसे चारण मनि जाना और इसका भव्य स्वागत किया। सस्नेह इसे आहार दिये। पूछने पर मृदुमति मौन रहा । उसने यथार्थता प्रकट नहीं होने दो। इसके फलस्वरूप मदुमति ने तिर्यंचगति का बन्ध किया और मरकर ब्रह्म स्वर्ग में देव तथा स्वर्ग से चयकर त्रिलोकमण्डन हाथी हआ। अभिराम ब्रह्म स्वर्ग से चयकर भरत हुआ। भरत को देखकर त्रिलोकमण्डन को जातिस्मरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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