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________________ २६२ अमरसेणचरिउ [ ७-११ ] णंदउ जिणवर - सासण-सारउ । जिणवाणी वि कुमग्ग - विद्यारउ ॥१॥ नंदउ वुहयण समय-परिट्टिय । णंदउ सज्जण जे विस-विट्टिय ॥२॥ दउ णरवइ पय- रक्खंत | णायमग्गु लोयहं दरिसंतउ ॥३॥ संतिवियं भउ पुट्ठिवियं भउ । तुट्ठिवियं भउ दुरिउ - णिसुंभउ ॥४॥ सेणिउ - णिग्गउ णरय- णिवासहु । जिणधम्भु वि पयडउ भव- वासहु ॥५॥ जि मच्छरु - मोहु वि परिहरियउ । सुहयज्झाणि जें नियमणु धरियउ ॥ ६ ॥ हेमचंदु-आयरि वरिट्ठउ । तहु सीसु वि तव तेय - गरिउ ॥७॥ मुणिवरु | देवणंदि तहु सीसु महीवरु ॥८॥ धारंतउ । राय-दोस-मय-मोह -3 पोमंगंधर - नंदउ एयारह-पडिमउ सुझा हत ॥९॥ उवसमु-भावंत । णंदउ वंभ लोलु समवंत ॥१०॥ तहं पास जिणेंदह गिरवण्ण । वे पंडिय णिवर्साह कणय-वण ॥११॥ गरुवउ जसमलु गुण-गण- णिहाणु । वीयउ लहु बंधउ तच्च - जाणु ॥ १२ ॥ सिरि संतिदास गंथत्थ-जाणु । चच्चइ सिरि पारसु विगय-माणु ॥१३॥ नंदउ पुणु दिवराउ जसाहिउ । पुत्तकलत्त पउत्तु वि साहिउ ॥१४॥ घत्ता रोहियासि -पुरि-वासि, सयलु लोउ - सह नंदउ । पास - जिणहु पय-सरय, णाणा थो तह वंदिउ ॥७-११॥ [ ७-१२ ] वण्णवि सारी ॥१॥ सुयण- समासिउ ॥२॥ कुलु-संताणिजं ॥३॥ पुणु णामावलि भणिउं वि सारी । दायहु-केरी अइरवाल सुपसिद्ध वि भासिउ । सिथल- गोत्तिउ वूल्हाणि वि अहिहाणें भणिउं । जें णिय-तेएं करमचंदु चउधरिय गुणायरु । दिवचंदही भज्जहि वि मणोहरु ॥४॥ तस्स तरुह तिष्णि वि जाया । णं पंडव इह तिणि समाया ॥५॥ सत्य- अत्थ-रस- भायणु । महण चंदु णं उइयउ धरइणु || ६ || पढमउ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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