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________________ २६० अमरसेणचरिउ वह विह धम्मु अखंड वियानि वि। चेयग-गुण अप्पउ सम्माणि वि ॥१०॥ पाव-पयडि कम्मइं संघारि वि । आसव-वार-गमणु वि णिवारि वि ॥११॥ माउसंति सण्णासु करेप्पिणु । पुणु पाउग्गह-मरणु मरेप्पिणु ॥१२॥ अमरसेणि-वइरसेणि भडारा । गय पंचम-सग्गिहि मुणि सारा ॥१३॥ घत्ता विण्णि वि तह सुरवर, अच्छर मणहर, सहजा भरहिं लंकरियई। चढि दिव्व-विमाणाह, घंट खालाह, अंच्चहि तइ लोयहं जिणइं ॥७९॥ [७-१०] पुणु णरवइ पुणु सुर-देवगई। जाएसहि सुह-कम्मेण दुई ॥१॥ तह सुर-सुह-भंजि वि विणि देव । तइ यइ भइ होसहि सिद्ध-देश ॥२॥ अण्णण्ण जिणिव पुणु तव-वलेण । सुहगइ संपाइय गय-मलेण ॥३॥ यउ-गाणि वि भवियण-दाण देहु । अह-जिण-आयम सिद्धा करेहु ॥४॥ मूल कहिउ इहु वीर जिणेदें। पुणु गोयमिण सुधम्म-मुणिदें ॥५॥ पुणु जंव-केवलिहि पयासिउ। णंदिमित्र अवराइय भासिउ ॥६॥ गोवद्धण भद्द विराइएण । पुणु भद्दवाह मुणि सामिएण ॥७॥ आयरिय परंपर जेम दुद्ध । जिणचंद वि सूरे तेम सिठ्ठ ॥८॥ तहु सुत्तु पिक्खि ललियखरेण । मणि माणिक्कि किउ सुह-गिरेण ॥९॥ महणा-सुयहु वि उवएस एण । देवराजहु-विणय पयासएण ॥१०॥ गंदउ महिसारउ जाम इत्थु । सुज्जु वि चंदु वि घरणीय सत्थु ॥११॥ वुहयण यणहि वि पाढिज्जमाणु । सत्थु वि सारउ सत्थत्थ-जाणु ॥१२॥ पत्ता तिप्पउ इह धरणी, सस्सहु धरणी, सुहकालि पउहरु वरिस। कामिणि-यण णच्चउ, णव-रस-सच्चउ, होउ लोउ सहु सर णउं ॥७-१०॥ सुहका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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