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________________ २५६ अमरसेणचरिउ [७-७] मिउमइ सग्गाउ चए वि जाउ । करि वरु जइ-भूषणु सुम्भ-काउ ॥१॥ जाईसरेण तें चत गासु । भरहहं दंसणि हुउ लाहु तासु ॥२॥ तं णिसुणि वि भरहें णविवि साहु । होइ वि णिसल्लु दीक्खिउ अवाहु ॥३॥ वहु राहि पुणु परिहरिउ मम्मु । किक्कइयई पुणु किउ तउ अहम्मु ॥४॥ राहवेण गिहाइ वि करिहु दिण्ण । अणुवय गिव्हिय तेण जि अच्छिण्ण ॥५॥ सिंदूर-सीसि घल्ले वि मुक्कु । पुर-मज्झि भमेइ कसाय-चुक्कु ॥६॥ जहि-हिं गच्छइ हि-तहि जि लोउ । लड्डू-पूया तहो देहि भोउ ॥७॥ विण्णाय कुसुहयाल उ-पसिद्ध । तइ यहु हुंतउ जायउ पसिद्ध ॥८॥ भरहु वि तवयरणे लहि वि णाणु । हुउ सिद्ध णिरंजणु अचल-ठाणु ॥९॥ घत्ता सो भूषण पूयणेण इह, __एरिस संपय जवउ हुउ। जो अण्णु को वि पुणु अचल-मणु, सो पुणु किं गउ होइ धुउ ॥ ७-७॥ मगहाहिव सुणि सरेववएण, गोवालु वि जिणवर-पूयणेण । करकंडुपजायउ, जय विक्खायउ, एयग्गे थिर-मणिण ॥छ॥ [७-८] इह अज्जखंडे कुडल-विसए । पुरितरणामुपोसिय विसए ॥१॥ तहि राउ-णोलु-णिवणोइ-राउ । वणिवइ-वसुमित्तु पण?-राउ ॥२॥ तह गोवालो-धणदत्तु सुही। परिभमिय णिच्च-वण अच्छ वि मही ॥३॥ ते एक दिवसि [सरि] सहसदलु । दिट्ठउ जलंति वियसिय-कमलु ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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