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________________ अमरसेणचरिउ [ ७-६ ] राउ ॥४॥ 11411 ताह गिह-भारु -पदिण्णउ सयलु तासु । सो वेसह रतउ तहं हयासु ॥ १ ॥ धणु-सयलु विगासि वि घरह पाउ । चोरत्तणि पुणु वड्ढइसु ताउ ||२|| चंदउर-यरि णिव गिहि पयट्टु । धण धण्ण- णिमित्तं पाउ दुछु || ३ || ता महिसो सहु पभणेइ सउ । आयण्णई चोरु-पवद्ध पीए सुप्पहाई तवयरणु लेमि । रइ सुक्खु-परिग्गहु-परिहरेमि भज्जाइ भणिउं भो दीहवाह । हउ तउ पुणु गिहमि सत्य नाह ॥ ६ ॥ ते सुणि तक्कर किउ नियम तत्थ । महवय-धारमि हउ णिवह सत्य ॥७॥ जि संगें सुपहाइ दिक्ख । गिण्हय चोरे पालइ सु सिक्ख ||८|| पुणु अवरु कहंतरु पक्कु जाउ । आलोय-णयरि मुणि एक्कु आउ ||९|| गिरि - सिहरि परि घरि वि जोउ । तहु पडिदिणु पेच्छइ णयर- लोउ ॥१०॥ कइया पुणु पुज्जइ अस्स जोउ । तहु महु घरि भुजइ जइ समोउ ॥११॥ परिपुण्ण जोइ सो चारणक्खु । गयणयरि गयउ खय अक्खु- पक्खु ॥ १२॥ तहि अवसर मिऊंमइ तत्थ आउ । चरियत्थ पयट्टउ पुरिअराउ ॥१३॥ जणु सयलु पमण्णई भोजि एहु । जो जोए ठिउ गिरि लंव-देहु ॥१४॥ लोएं पुज्जि वि तहु दिष्णु दाणु । पुणु-पुणु संतोसो तहं अयाणु ॥ १५॥ मोणेण थक्कु सुह मणिऊण । वद्धउ तिरिक्खगइ कम्म तेण ॥ १६॥ २५४ घत्ता गउ वह सग्गि मुणि, किय माया जिणि, विष्णि वि वंधव मिल्लिय तह । अहिरामु-तियस चुऊ, एत्थु-भरहु हुऊ, रहव जसु पइदिण्ण महि ॥ ७६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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