SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० अमरसेणचरिउ [६-११] काराविज्जइ-जिणवर-पइट्ठ । यत्तहं दाणई वित्ताह हिट्ट ॥१॥ पुत्थइ लेहाविवि जो वि जईसहं । देइ वि भावें णाणमहीसहं ॥२॥ सो भवि-भवि पंडिउ-उपज्जइ । पुणुर वि केवलेण मंडिज्जइ ॥३॥ एयभत्त अहवा उववासें । कजिएण णिय सत्ति-पयासें ॥४॥ फलु जि समाणु-भाउ जइ सुद्धउ । तं विणु वउ-तउ सयलु विरुद्ध उ ॥५॥ तं आयणि वि गिहिउ कण्णई । पोमावइ सहाइ सुपसंण्णई ॥६॥ वासर-पाच ताइ आयरियउ । पुणु सुरगणु-गउ तक्खणि वुरियउ ॥७॥ सा वि मिणालउरिहि णिय देविए । थप्पि वि गय जिणहरि-सुर-सेविए ॥८॥ तत्थ पहावइए रिसिपुगम् । तिहुवणचंदु णामु गयसंगम ॥९॥ अहि वंदि वि तवयरणुप मंगिउ । ता मुणिणा णाणेण वियक्किउ ॥१०॥ भव्वु-भव्वुपइं मंतिउ पुत्ती। आउ तुझ दिण तिष्णि-णिरत्ती ॥११॥ घत्ता तं णिसुणि वि कण्णई, सील सुपुण्णई, अणसणह सह धरिउ तउ। तच्चत्थु-मुणंति, जिणु-सायंती, तण-सग्गे ठिय अचल-भउ ॥६-११॥ [ ६-१२ ] एतहिं अवलोयणि पुणु जणणे । पेसिय तव-विहि-चालण कुणणे ॥१॥ विज्जइ घोरुवसग्गु पउंजिउ । तहं विण ताहिं जोउ-गुण भंजिउ ॥२॥ मुय-सण्णसें अच्चुअ-सरहिं । पउमुणाहु सुरु हुउ सोहग्गहि ॥३॥ अवहिए तें चिर वइयरु जाणिउं । पुणु जणणहो संवोहण-आयउ ॥४॥ णियच्चरित्तु आहासिउ तायहो । देवाविउ वउ वियलिय मायहो ॥५॥ णिय गुर-पासिय बंदिय तहु पय । पवर-थुई थुणेप्पिणु गय रय ॥६॥ कुसुमंजलि-वउ पय लिवि लोयहं । गउस ठाणि सुरु वट्ठिय-भोयहं ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy