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________________ अमरसेणचरिउ [ ६-७ ] एप्पिणु ॥२॥ कण्ण- मणिट्ठा ॥३॥ तमिचडि वि चणगिरि जिणहर । अढाई - दीवहि ते रुह मणहर ॥१॥ दो असेस बंदि वि अंचेपिणु । सिद्धकूड - जिणमंदिर पूजि वि जिणहु जाम उवविट्ठा। तातहिं दिट्ठा मयणमजुसा णाम किसोयरि । जिणु-पूजंती मणिसेहरहु णिय-विसामो हिय । मवण- सरेराह चित्ति वि रोहि ॥५॥ वित्तो । परियाणि विणिय - गेहि समित्तो ॥ ६ ॥ मण - हलदरि ॥४॥ ता कण्णा-जणणे मणिहरु पिणु घर-घपिउ । पुणु वि सयंवरु पहुणा रोप्पिउ ॥७॥ जगमय पच्चय- कारणे वेयर | आहूया सयल वि लच्छोहर ॥८॥ विहिय सयंवरि रयणा सिहर सिरि । माला कय घल्लिय तेणहु सिरि ॥९॥ ताम वियच्चर सयल विरुद्धा । असि वर-धारइ तेण निरुद्धा ॥ २०॥ पाहुडकय ते सरण पट्टा । तें परिणिय तं कण्ण-मणिट्ठा ॥११॥ २३४ घत्ता कइव-दि- पच्छई, पुणु कय णिच्छई, णिय उरि गउ पिय मत्त जुउ । दिट्ठउ तहं जुयलउ, णह पत्र विमलउ, भज्जई सहु Jain Education International भत्ती - इणु ॥ ६-७ ॥ [ ६-८ ] घणवाणुमणि से हर रुस पिउ । अण्र्णाहं दिणि तहं वंदि वि चारणु अमियगई । धम्महु वि तं पुच्छिउ यि पुण्णाय सऊ । जं पुरह कंचन - सिहरिहि गउ ॥१॥ णिणि वि सुद्धमई ॥२॥ रज्जु-लद्वय अजेउ ||३| हु-कारणु मित्तहो पिर्याह । आहासइ तासु जईसु तहिं ॥४॥ तहं भरहहिं मंगलवइ-णयरि । संभव- जिण तित्थि णिहित्ति अरि ॥५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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