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________________ २२७ षष्ठम परिच्छेद [६-१] [देवरा चोधरो के निवेदन पर कवि द्वारा कथित मेढक-पूजा कथा वर्णन] ध्रुवक-शत्रु रूपी हाथी के लिए बाधा स्वरूप-साहु महणा के पुत्र चौधरी देवराज ने इस प्रकार जिनेन्द्र की पूजा का फल सुनकर, मेढक की जैसी कथा हुई उस कथा ( के कहने का निवेदन किया ) ॥छ।।। ( चौधरी देवराज कहता है हे माणिक्कराज !) जिनेन्द्र भगवान् की अर्चना और भावना से मन की इच्छा के अनुसार देवपद प्राप्त किया जाता है ।।१।। शरीर से विरक्त होकर मन, वचन और काय से जिसने ( जिनेन्द्र की पूजा का ) भाव किया है, वह कोई प्रिय मेंढक देव-समह से सेवित तथा आसराओं सहित स्वर्ग में देव हुआ ॥२-३।। वह वीर भगवान् के समवशरण में प्राप्त हआ / गया, उसने भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हुए सम्यक रूप से गुण-स्तुति की ।।४।। चन्द्र स्वरूप मगध-नरेश श्रेणिक के द्वारा देखे जाने पर ज्ञान-दिवाकर गणधर से पूछा गया ॥५॥ हे गणसमूह के आगार-गणधर ! अमन्द बुद्धि यह मेंढक कौन है ? देव कैसे हो गया ? ।।६।। चौधरी देवराज ने कहा हे कवि ! गणधर ने श्रेणिक से जैसा यह रहस्य कहा, मुझे कहो और मेरा संशय मिटाओ। कवि कहते हैं सुनो ।।७।। इन्हीं श्रेणिक राजा की नगरी में शत्रु-भय को दूर करनेवाला महान् धनवान् वणिक नागदत्त ( था)।।८।। उसकी गुणों से मनोज्ञ भयदत्ता भार्था ( थी )। वणिक ने आर्तध्यान से प्राण त्यागे ( और ) अपने घर के पास वापी-प्रदेश में ( वावली में ) जल रमण करनेवाला कोई मेंढक हुआ ॥२.१०॥ पत्ता-वह मेंढक ( पूर्वभव को ) अपनी सेठानो का मन दुखाने उसकी शरण में जाता है। सामने होकर दौड़ता है, सिर तथा पैर दिखाता है तथा आँचल पकड़कर ऊपर चढ़ता है ।।६-१॥ [६-२] [ सुव्रत मुनि से मेंढक की क्रियाओं का कारण ज्ञात कर तथा उसे पूर्वभव का अपना पति जानकर सेठानी द्वारा स्नेह-प्रदर्शन-वर्णन ] सेठानी जहाँ-जहाँ आती है ( वह मेंढक ) वहाँ-वहाँ आगे-आगे उचकता है | दौड़ता है ॥१।। ( सेठानी ) उसके भय से पानी लेने नहीं जाती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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