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अमरसेणचरिउ इय मुणिविवि सत्तासत्त-सार । कीरंति जईसर दुण्णिवार ॥९॥ तरुमूलि सिलायलि गिरि वर्णति । णिय तणु-तिणसउ मुणिवर गणंति ॥१०॥ रवि-कर-उण्हालइ सिसिर-सोउ। तरु-तलि णिवसहि वरिसंति वीउ ॥११॥ दंडासणि-मडयासणि असंक । वज्जासणि वसहिवि विगयपंक ॥१२॥ पोमासणि-गोदोहासणम्मि । छह विहु वरि रत्तई थिर-मणम्मि ॥१३॥ मुणि अमरसेणि-वरसेणि तहि । आभितर-तउ पुणु सा करहिं ॥१४॥
पत्ता
विणु पायच्छित्ते, माया चत्तें,
तउ-विसुद्ध गउ होइ इह। पुणु दंसण-णाणहु, चरण-पहाण हु,
गुरु परमेठिहिं विणउ इहु ॥ ५-१९ ॥
[५-२०] गणहं गलाणहुं पाठय-मुणिवर । वह-विहु वइयावच्च णिहय-सर ॥१॥ आयम-सत्था सासु गिरंतर । करहिं तपि-सज्झाउ-दुरियहरु ॥२॥ तणु-चायं रयण-तउ भावहिं । धम्म-सुक्क-माणई महि मावहिं ॥३॥ इय वारह-विहि तउ पालंतइं । पुवक्किय कम-मलु खालंतई ॥४॥ भव्वहं धम्म-पंथि लायंतई। महि विहरहिं तित्थई तई ५॥ चारि णिओय चित्ति भावंतई । सुय-विहाणु लोयहं भासंतई ॥६॥ वोहिउ सयलु लोउ जिण-धम्महि । मिच्छंदंति मउणिहि हरि-णाहिं ॥७॥ संपत्तइं देवगिहि रवण्णी । धण-कण-जणवहु देस-परिपुण्णी ॥८॥ देवसेणि तह पहु णिव-माणउं । देवसिरिय णिय भज्ज समाणउं ॥९॥ थिय सिंहासण णिय सह जुत्तउ । वणवालु वि इत्थंतरि पत्तउ ॥१०॥ फल-फुल्लइ-णवल्ल भरि डल्लरि।गरवइ अग्गइ धरि णइ णिय सिरि ॥११ भो णिव तव णंदणवणि मुणिवर । सम्मावियाई वे लोयहं सुहयर ॥१२॥ आणंदभेरि देवावियाइं । तें सर्दै पुरयण सम्मावियाई ॥१३॥
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