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________________ २१० अमर सेणचरिउ [ ५-१६ ] परिगहु - किज्जइ दुग्गइ-कारणु । ॥१॥ परिगह मोहिउ किंपि ण चेयइ । वहु वावार करइ णिहि-संच ॥२॥ पहिलइ भूलउ मूल- अयाणउं । खोदत-मुहुं करि पच्छित्ताणजं ॥३॥ तिहं मुह-धू अहि इव संपण्णी । णउ खद्धी णउ पत्तहं दिण्णी ॥४॥ गय-संपय लोहंधहं पावहं । मरि वि जाइ हिय कट्टि वि णरयहं ॥५॥ पंच अणुव्वयाइं जो पालई । सो सिवपुरि-तिय-वयणु-निहाल ॥६॥ चउ सिक्खावय तिष्णि गुणव्वय । पालिज्जइ भव्वयणु सुहाय ॥७॥ कहिउ जिणागमु सलु जिगदहं । पुरिस तिसट्ठि हि चरिउ अणिदह ॥८॥ विवरिय आव-काय तहं जइयहं । कहिउ पमाणु तिलोयहं सयलहं ॥ ९ ॥ सुर-र-णारय-भेउ पयासि । जिनवर - ईरिउ सयलु समक्खिउ ॥१०॥ भो शयाहिराय यउ किज्जइ । वय- तवयरणहं भाउ रइज्जइ ॥ ११ ॥ जं चउगइ गइ पाणिउ दिज्जइ । सासय-गमणु जेण सासयाई उ पुत्त- कलत्तई । धणु-जोव्वणु- सुयणइ उ मित्तई ॥१३॥ दीसहि सयल वत्थ जे मणहर | इंदधणुह तहि वुव्वुद धण सर ॥ १४॥ पाविज्जइ ॥ १२ ॥ घत्ता चवीस जिणेसर, जय परमेसर, कुलयर यंद फणिंद पर । वारह चक्केसर, णव हरि-परिहर, Jain Education International वर णारय जम-गसि धर ।। ५- १६ ॥ [ ५-१७ ] भो अमर सेणि वरसेणि भाय । णउ पुग्गलु अप्पुण होइ राय ||१|| पोसिज्जइ खड-रस एह काय । णउ जीवहं सत्यें एह जाय ॥२॥ किसु परियणु-पुत्त-कलत्त - गेहु । सासइ ण कस्स विणसंति सहु ||३|| म कहि राय जाणहु हिए। जि कहिउ जिणेसर णिच्चएण ॥४॥ मुण कहि धम्म सुणि विष्णि भाय । तव यरणहं उप्परि भय सराय ॥५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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