SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरसेणचरिउ [ ५-१४ ] उपरि सुच्छ-भाय ॥२॥ । काराविय इय दाण- फलई सुणि सुच्छ भाय । इव दिज्जद पत्तह असुह-वाह ॥१॥ पहु-अमर सेणि-वइरसेणि राय । जिन्हु-दाणे पुर-पट्टण - दीवहं-यर-गाम दाण इं-साल ताम ॥ ३॥ दिन-दिन पहियहं तहं दुत्थियाहं । खडरस भोयणु तहं दितियाहं ॥४॥ वहु सत्तुव-पालई ठाई ठाई । पंथियहं दितव पुसुयराई ॥५॥ जिणवर-विहार । जिण अच्चण- वुद्धह - ण्हाणचार कुवा- वाई वहुव कराविय । सरवर-कमल णिच्छयण कराविय ॥७॥ धम्मत्थ-य ॥६॥ २०६ उक्तं च ॥ पुत्रसोक समो सोक, रिच्छि हत्या ममं ततः ( प ) । धर्मोदया समो नास्ति, ण च दान- समा निधिः ॥ १ ॥ पत्तहं चउविह दाणें पोर्साह होण-दीण-दय-दाणें पोसह ॥८॥ जहि-जह तित्थंकर उप्पण्णई । तहं तहं णाणु मोक्खु संपुई ॥९॥ अवर थाइ जहं सिद्धउवण्णई । तह तह थाइं कराविय चेयई ॥१०॥ ठाई ठाई जिण-पडिम-कराविय । करि पतिट्ठ चेईहर - थाविय ॥११॥ सुर-केह यि संपइ-वाइय । विविह महोच्छव किय जिण - सामिय ॥ १२ ॥ जहि जहि काराविय चेयालई । तहिं तहिं पुज्जिय जिण-जयसालई ॥ १३॥ सयल तित्थ णमियई जिण णाहहिं । कित्तिमकित्तिमाई पुज्जिय तहिं ॥ १४ ॥ तित्थि-पवण्णु पोसह उववासई । चउविह आहारहं सण्णासई ॥ १५ ॥ काओसग्गे झाणें अछ । सुरग्गमि हाइ वि जिणु अंचहि ॥ १६॥ सत्त घडिय मुणिवरु-दइ भुज । सज्जण - जण-मण- यणे रंजहि ॥ १७॥ धम्मे-झाणें रहहि दयालई | सत्त विसण दूरें विद्दालइ ॥१८॥ for re-use दिणु तिलोयहं । किज्जइ भवियहं पुव्व किउ सव्वहं ॥ १९ ॥ जिणवर-पूय दाणु - चउसंघहं । दिज्जइ मण-वय-काय तिसुद्धहं ॥२०॥ अण्इ जिणगिह-मणिमय बद्धई | थप्पिज्र्जाह जिण-विव तिसुद्धइ ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy