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________________ अमरसेणचरिउ [ ५-१३ ] भो सिध्धु किउ ॥ १ ॥ पुत्त- रज्ज-कज्जेण सरि ॥२॥ लग्गउ तुम्हहं किय-कहिए ॥३॥ सुणहु रानिव भणउं धुउ । इव कम्मुप्पाउ तुम माइ सवत्तिर्हि सल्लु घरिणि । जं तुम्ह दिण्णउ लंच्छणु कवडु किए। पहु णिव मारणत्थ चंडहि सहिउ | चंडह - इयभाव विएसु दिउ ॥४॥ लह सुकि कम्म तुम्ह रज्जु भउ । णउ अलियउ अहह वाय धुउ ॥५॥ पुण्वहं संबंध कम्म किउ । ण उच्छुट्टइ जिउ विहि पासि पडिउ ॥ ६ ॥ भुकम् हु- असुह विहिउ । 11911 जाणि विकिज्जइ खमहं भाउ । सह सत्तुह उपरि मित्तिभाउ ॥ ८॥ जं पंच वमुराडी फुल्ल-लेवि । जिणु-वच्चि चडाविय पय- णवेवि ॥९॥ तं पुण्ण-पहावें रयण-निहि । सय पंच चूथफल रयण सुहि ॥ १०॥ सइ सत्तइ कंथा झहि तहिं । सूरोग्गमि भणिय विवाय महि ॥ १॥ ह गामणि- पावलि लउठि सुट्ठ । भू- गोयर खेयर राय दुट्ठ ॥१२॥ वसि कियइ अतुल वलभिच्चकित्त । अणु दिणु पग से वह एयचित्त ॥ १३॥ तुणु भणइ जईसरु सुणहु वत्थु । पाएसहु सुर - णर पर मणित्थु ॥ १४ ॥ पुणु विष्णवि तुम्हइं तउ करेवि । जाएसहु सिवपुरि याणिवे वि ॥ १५ ॥ for सुणिवि भवंतर विष्णि भाय | आणंदें हियइ ण कत्थ माय ॥ १६ ॥ अण्णह रणारिहि सुणिवि धम्मु । सद्दहिउ हियइ तं विगयच्छम् ॥१७॥ केहिमि तह लयई अणुब्वयाई । केहिमि सावय- वय गिहियाई ॥ १८ ॥ केहिमितियाल जिणवरहं पुज्ज । केहिमि केलव्वउ सुरह - पुज्ज ॥१९॥ केहिमि वय- सोलह कारणाइं । केहिमि दह लक्खणु वउ लियाई ॥२०॥ केहिमि पचइव्वउ लयउ सुठु । केहिमि चउ पब्विय लइय इट्ट ॥२१॥ २०४ घत्ता वि-सुयहं पमुह णर, पणविवि मुणिवर, धम्मुवि अणुवय सहियई । गय विणि वि भायर, गुण- रयणायर, Jain Education International गय णिय पुरयहं पयस - हियर ॥ ५-१३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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