SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० अमर सेणचरिउ घत्ता गउ लइ जिणवर-गेहहिं, वहु सोहा जहि, मुणि थक्कइ चउमा सहि । वणि अट्ठइ-पर्व्वाह, उववासिउ तह, गयइ तिण्णि-जिण भवणु तहिं ॥ ५-१० ॥ [ ५-११ ] वणि सुच्छ जोय ॥१॥ जिण गंथ- गुरहं अंचनहं हेय । लिय पुफ्फमाल अद्धे कम्मेरहं देइ सुच्छ । णउ गिण्हहिं ते पर- दव्व वत्थ ||२|| वुज्झइ विवहारी किंण्ण लेहु । महु हिय अच्चरिय डभगस देहु ॥३॥ ते भई जस्स हम फुल्ल लेहि । तं पुण्णु होइ अम्हा ण सुहि ॥४॥ उ गिor वणिवर णिच्चएण । इय भासहि गिर ललियक्खरेण ॥५॥ तों सुणि विवहारी हरख-चित्तु । जिय जयवर-पासह वर पवित्तु ॥६॥ जिणधम्मोवरि जिणि चित्तु लाय । पुणु-पुणु वणिवर गुर पर्णावि पाय ॥७॥ सुणि जइवर ए दो सुच्छ भाय । णउ पुज्जहि जिणु हम दव्व-चाय ॥८॥ तं कारणु वुज्झहि साहु-भव्व । एयाहं वि दुष्णिहु विगय गठव ॥ ९ ॥ तं णिणि वि मणइ गुरु अमियवाय । णरवइ-सुरवइ-फणि णमहि पाय ॥१० भो कम्में रहु पया - जिणंद । तुम कि ण करहु तिल्लोयवंद ॥११॥ सावउगम मण णहच्छेय- पियारी। सुर-णर-फणिंद सिव-गमणह सारी ॥१२॥ तं णिणि वि घण्णंकर- पुण्णंकरु । अण्णाहं वयणुल्लउ सुच्छि णिरु ॥१३॥ यि दव्वहं कुसुम अम्ह लेहि । चच्चहि जिणु सामिउ थुइ करेहिं ॥ १४॥ भो भइ जईसरु किंचि दव्वु । जइ अत्थि तुम्हहि कहहि भन्नु ॥ १५ ॥ घत्ता Jain Education International इक्कहं कम्मंकर, भणिउं महुर सर, महु पहि कउडी पंच जई । तं मोलहि जहि, कि लग्भइ तहि, कुसुम अमोल्लइ सुणि सुमई ॥ ५-११ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy