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घत्ता
विट्ठइ मुणि-पासहि, मयणु-विणासहि, वय -तव-संजम-वय-धवल
णिग्गंथ दियंवर, रिद्धि गयण वर, तव तेयं जिउ तरणि वर ॥ ५-६ ॥
अमरसेणचरिउ
[ ५-७ ]
डिंभ समेयहं ||५||
सुहगुण-ठाणजं ॥ ६ ॥
सइ एकलई ॥७॥
पुणः पुणु पण विवि रावहं मुणिवर । कहि परमेसर धम्मु वि सुहयरु ॥ १ ॥ मुणि अक्खइ णिसुणहु लोय सारु । जिणधम्मु-दयालउ लोय सारु ॥२॥ सायार-धम्मु भव्वण-इठु । जो पालइ सावयवयइ सुठु ॥३॥ सुइइ-गम विसिव- सुह- दायउ । थावर-तस भेयइ वहु काउ ॥४॥ मण वय कायहं जो दय-हिययहं । रक्विइ धम्मिउ सच्चहं धम्महं धम्भु पहाणउ । दाणु- चउव्विह मुणि-तव-सावयवयइ पहिल्लई । सुह-गइ कारण सुहम-थूल जे जीवह उत्तई । णाण गणह समाणई वुत्तई ॥८॥ जा कुइ ताहं विणासह पाणइ । सुब्भ-गई सो नियमें माणइ ॥ ९ ॥ जो रक्खइ सो सव्व सुहकरु । सिद्धि वहुल्लिहे सो सच्चइ वरु ॥१०॥ सच्च-वयई - आयरई जि जणि । सच्चु पयं पर भावइ नियमणि ॥ ११॥ एवमेव जो अलियउ भासइ । सुक्कु होइ सो दुग्गइ - फासइ ||१२|| अलिय भासि इह परभउ हारई । होइ पमाणु ण गड्दिउ पडिउ परहण - पिच्छिवि । लेइ ण देइ ण अणु दिण्णउ जो परधणु साहइ । चोरु होइ सो णि कुसु दाहइ ॥ १५ ॥ माइ । नियमत्तहु उवरिम संठाणहु ॥ १६॥ किज्जइ । वाधारु वि आलाउ चइज्जइ ॥ १७॥
सुहगइ वारइ ॥ ९३॥
पर - मणु वंचि वि ॥ १४ ॥
घत्ता
पर जुवई - संगम, कय दुग्गइ गमु,
परवसु-धूलि - समायउ तक्कराहं बहु संग ण
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सुगइ-वारण अजसघरु ।
रावणु पडिउ जणि, परुतिय धरि मणि,
णरय-पवण्णउ पयरु भडु ॥ ५-७ ।।
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