SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ अमरसेणचरिउ घत्ता तहिं अवसरि राय, विणु ववसाय, कि खज्जइ संयइ रहियई। मरइ सुह रंधइ, वेसहि लुद्धई, किउ कुकम्म महु भेउ लई ॥५-१॥ [५-२] अख-रुत्ति हउ पहु आरणहिं । विट्ठउ जाइ देव सुह भवहिं ॥१॥ तहिं अवसरि तक्कर संपत्तई । अणुवम-वत्थ-तिण्णि-लइ पत्तइं ॥२॥ कथा-जट्ठियाणहपावलियहि । णिय-तेयइं सुज्जहु जे मिलियहि ॥३॥ तिणि कारणि झयहि पुरह-मोस। मइ वुज्झे तक्कर महुर-धोस ॥४॥ किणि कज्जे लग्गह कहह मज्झ । हउ झयडउ फेडउ तुम दुसज्झु ॥५॥ हउ रयणीयलु तुम्ह सहाई । गुज्झु पयासहु सुहि महु भाई ॥६॥ हो आइवइ [ते] मझु पास । ते अक्खहि णिसुणहि महुरभास ॥७॥ कुइ जोई खण-मासेण विज्ज । साहिय तं सिज्झो तेय-सुज्ज ॥८॥ दिण्णिय तह वत्थइ जोइयाहं । जं सयल कज्ज मण-इच्छियाहं ॥९॥ गय णियस थाणह सुच्छ विज्ज । तुट्ठउ जोईसरु-मिच्छ-पुज्ज ॥१०॥ जट्रिय-रिउ-महण रणि-अजेय ।पावलिय णहं गणि सुज्ज-तेय ॥११॥ कंथा झाडइ सय-सत्त रयण । महियरि पडत रवि-तेय एण ॥१२॥ खण-मास हम्म जोई हि पास । सज्जउ मसाणु अइ दुक्ख-वासु ॥१३॥ मारियउ कवालिय तित्थु ठाई। आणिय तइ वत्थ मणिच्छियाइं ॥१४॥ ए तिणि हत्थ हमि तुरिय जण । णउ वंटिय आवहि सुच्छ-मण ॥१५॥ मइ भणिउ देहु महु सुच्छ वत्थ । हउं अप्पउ सच्चह वंटि सुत्थ ॥१६॥ महु दिणिय पावलि पहिरि पाय । हउं गयउ खणखें पुर-समाय ॥१७॥ जिउ सिरु-धुणे वि पत्थि[च्छि]यउ करि । गय चोर विलक्खइ तत्थयरि ॥१८ पत्ता तुम्हहं जोय ण वंच्छउ, इहच्छुह अच्छउ, णिय कथाह पसाय णिहिं। पुणु दिद्वउ लंजिय थेरिहि, विडयण णारिहि, सुह वयणे हउ लियउ घरि ॥५-२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy