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________________ चतुर्थ परिच्छेद १८१ भ्रमण किया है || १०|| ऐसा सुनकर राजा कुपित हुआ । ( उसने ) बैरी के विरुद्ध अपनी सेना छोड़ दी ||११|| वे ( सैनिक ) विरोधी को मारोमारो कहते हुए अशुद्ध वचन ( गालियाँ ) भी बोलते हैं ||१२|| उसे ( वरसेन को ) कहते हैं -रे निर्दयी, पापी, दुर्जन ! (तुमने ) कोतवाल को क्यों मारा ? || १३ || वेश्या को तुमने गधी क्यों बनाया ? (यह ) तुम्हारी सम्पत्ति ( विद्याएँ ) यमदूत के समान हैं ॥ १४ ॥ वइरसेन ने सुख - पूर्वक दुःखकारी वचन सुनकर सभी के मुँह पर लाठी मारी || १५ || कोई भाग कर राजा की शरण में गये, कोई लज्जित होकर तप करने वन गये || १६|| भगदड़ मच गयी, पुरजन वैसे भाग गये जैसे सिंह के भय से स्थित हस्तिदल भाग जाता है ||१७|| शरणागतों की पुकार सुनकर नवकार ( णमो - कार मंत्र ) धारण करके राजा सेना लिए बिना ही तुरन्त यम के रूप में उस ओर दौड़ा जहाँ जयश्री प्राप्त शत्रु ( वइरसेन ) स्थित था ॥ १८-२० ।। अति क्रोधित होते हुए उसने कहा -- मारो मारो ! अरे ! यम के आगे प्राप्त होकर पहुँचकर कहाँ जाते हो ? ||२१|| घत्ता - उसके ( राजा के ) वचन सुनकर ( वइरसेन ) पुलकित होकर गया। उसे सुखपूर्वक बड़ा भाई दिखाई दिया। राजा उसे देखता है और यह मेरा भाई है ( ऐसा जानकर ) राजा होने का मान त्याग करके ( उससे ) सुखपूर्वक मिला ॥४-१३।। अनुवाद भली प्रकार कही जा सकने योग्य चारों वर्ग की कथा रूपी अमृतरस से पूर्ण शाह महणा के पुत्र देवराज चौधरी के लिए पण्डित माणिक्कराज द्वारा रचे गये इस महराज श्री अमरसेन चरित में अमरसेन - वइरसेन - मिलन-वर्णन नाम का यह चौथा परिच्छेद पूर्ण हुआ || संधि || ४ || जिनके ऊपर उठाये गये मुद्गर रूपी योग से महान् अज्ञान अन्धकार क्लेशदायी अनादि का कर्मबन्ध चूर-चूर होकर नाश हो जाता है; नित्य स्त्री-पुत्र, धन-धान्य देनेवाले, पवित्र, भव्य और तपोधन वे सप्तर्षि संज्ञाधारी हमारा कल्याण करें || १ || जब तक सिद्ध और शिवश्री है, राजा से सम्मानित देवराज चिरायु हो, सदा आनन्दित रहे और उसकी सदा वृद्धि हो ||२|| कहा भी है- साधुओं के दर्शन, शीलवती स्त्रियाँ, धर्मयुक्त राजा और चारित्रवान् संयमी प्रशंसनीय होता है ||१|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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