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________________ तृतीय परिच्छेद १५१ चाण्डालों में भी उत्पन्न होता है || १ || एक अक्षर के सिखाने और सीखने से स्वभाव से वे गुरु-शिष्य कहे जाते हैं । पृथिवी पर ऐसा कोई द्रव्य नहीं है जिसे देकर ( गुरु के ऋण से शिष्य ) ऋण रहित हो जावे ||२|| यह वृत्तान्त सुनकर गरुड़ के मन में हर्ष उत्पन्न हुआ || १० | उसने कहा - ( जो ) एक अक्षर भी देता है / सिखाता है वह स्त्रियों और मनुष्यों का गुरु हो जाता है ॥ ११ ॥ इसने मनोज्ञ बत्तीस अक्षर सिखाये हैं अतः यह मेरा परम इष्ट / हितैषी हो गया है || १२ || इस प्रकार तुम मेरे गुरु हो गये हो, जाओ ! कहकर ( और ) पैर पकड़कर / नमन करके छोड़ दिया || १३ || गुरु के मारने से महापाप होता है ( जो ऐसा करता है ) वह इस पाप से नरक में रहता है / उत्पन्न होता है || १४ || घत्ता - दान के द्वारा ( नाग ) लोक में श्रेष्ठ हुआ, ( प्राण-संकट से) उबर गया । उसे जीवन मिला / जिया । श्रमण- गरुड़ आकाश में और गुरु नाग भी शीघ्र पृथिवी में चला गया || ३ - १२॥ [ ३-१३ ] [ स्त्री-प्रतीति- फल सूचक दृष्टान्त ] हे पुरुष ! स्त्री (पत्नी) को भेद नहीं दें । भेद देने से दुःख की खान स्त्री खिजाती है / दुखी करती है || १ || चारुदत्त को आपत्ति प्राप्त हुई । धन का क्षय हो जाने पर (उसे ) परदेश मिला || २ || यशोधर के कपोल और कण्ठ विदीर्ण करने के पश्चात् विष के लड्डू देकर मार डाला गया ||३|| गोपवती ने चोर को आलिंगन करने दिया, होंठ खाने दिये पश्चात् उसे मार डाला ||४|| रत्तादेवी ने पंगुल के लिए पति को ताँत की रस्सी से लपेटकर और जलाकर सरोवर में फेंका ||५|| योगी के निमित्त से देवांगना ने पति को मारकर उसकी देह अग्नि में फेको ॥ ६ ॥ अपराधी के चरित्र को कौन गिनता है ? वह मूर्ख है जो कलकल ध्वनि करने वाली नदी को लाँघता है ||७|| हे राजन् ! अपराधिनी स्त्रियों में प्रमुख हुई वीरवती (नारियों) को तुम्हें कौन कहता है ॥ ८ ॥ घत्ता - शत्रु रूपी पक्षियों के लिए बाज पक्षी स्वरूप हे श्रेणिक ! इस प्रकार जानकर मन से मानें। मन में संशय नहीं करें। स्त्रियों पर प्रतीति नहीं करें ॥३-९३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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