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________________ तृतीय परिच्छेद १४५ क्षित की कथा कहता है ॥२॥ इस जम्बूद्वीप के कुरुजांगल देश के गजपुर ( हस्तिनापुर ) नगर में नीतियों से विभूषित राजा परीक्षित ने सुखपूर्वक राज्य करते हुए एक अवधिज्ञानी मुनि से नम्रता पूर्वक पूछा-हे नाथ ! मेरा मरण कैसे होगा? शुभ ध्यानपूर्वक या अशुभ ध्यानपूर्वक, वाहन सहित या वाहन रहित अवस्था में ॥३-५।। राजा का प्रश्न सुनकर स्वच्छ हृदय मुनिराज कहते हैं-सर्प काटेगा, दस दिन का उपवास करते हुए रहो ॥६॥ हे मित्र ! कुछ भी संशय मत करो, हे कुल-कमल-दिवाकर ! कोई भी शरण नहीं है ।।७।। यदि शरण है तो जिनवाणी, उसे चित्त में धारण करके शुभगति पाकर संसार को मेटो । संसार-भ्रमण को नाशो ।।८।। ___घत्ता-ऐसे वचन सुनकर राजा को अतीव भय उत्पन्न हुआ। ठीक ही है-मिथ्यादृष्टि को शुभगति देनेवाले जिनेन्द्र के वचन कैसे रुचिकर हो सकते हैं ॥३-८॥ [३-९] [ राजा परीक्षित का मरण तथा वणिक-कोतवाल-वार्तालाप-वर्णन ] राजा परीक्षित ने शीशम की लकड़ी से महल और उसके पास वलयाकार जल-दुर्ग ( खाई ) बनवाया ॥१॥ ( उसमें ) आयुध्र-स्वरूप परम्परा से भयंकर जलचर प्राणी रहते हैं। (जो) वहाँ जाता है वह प्रवेश नहीं कर पाता ।।२।। राजा न स्नान करता है, न भोजन करता है और न कोई विनोद-मनोरंजन करता है। उसके मन में रात-दिन शोक बढ़ता है॥३॥ उसकी ( राजा की) नौ कली ( द्वार) वाली देह जहाँ थी उस स्थान (में) एक वन-तापसों ने प्रवेश किया ॥४॥ कोरंट वन से आये एक ( तापस) ने चिन्ता पूर्वक कहा / पूछा-रात्रि के पिछले पहर में क्या हुआ ? ॥५॥ उससे ऐसा सुनकर दूसरा वन-तापस भी कहता है कि मेरे लिए भी राजा परीक्षित प्रिय हैं ॥६॥ दिन-दिन में देह की नयी अथवा नवों कलियों में मेरे प्राणों को प्रवेश कराओ और पूर्ण करो | प्राण युक्त करो ॥७॥ दसरे कोतवाल ने इस प्रकार कहा-हे वन तापस ! आप ही इस तरह (कोई ) युक्ति करो ॥८॥ ___घत्ता-(वन-तापस कहता है )-अन्य लोगों को लेकर राजा की नौ द्वाररूप कलीवाली देह को बाँधकर सूर्योदय होने के पहले प्रभात वेला के समय उपवन में तुम लोग लाओ और खले आकाश में दावाग्नि में जला दो | दाह-संस्कार कर दो ॥३-९॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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