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द्वितीय परिच्छेद से दोनों अतिथि भाई हैं, शुभोदय से अच्छे देश में उत्पन्न हुए हैं, परोपदेशी हैं ।।१७। निजोपदेशी पापों को शीघ्र हरता है और स्वर्ग के देवताओं में प्रभुत्व (इन्द्र पद) (पाता है) ।।१८।। इस प्रकार इन भव्य अतिथियों को विफल करो जिससे कि उद्धार हेतु इन भव्य पुरुषों को फिर आना पड़े ।।१९।। पृथिवी पर सज्जन-भक्त वही है जो श्रुत से शोभित उत्तम चित्तवाले शरणागत की रक्षा करता है ॥२०॥
घता-इसके पश्चात् प्रिया (तोते) के द्वारा अपने प्रीतम (तोते) को कहा गया-हे स्वामी ! ऐसे वचन मत कहो। पर्वत की चोटी पर एक गुप्त स्थान है, वहाँ दो आम फले हैं ।।२-११।।
[२-१२] [ यक्ष दम्पत्ति द्वारा अमरसेन वइरसेन को दान किये गये
आम्र-फलों का माहात्म्य-वर्णन ] विद्या-सम्पन्न वह विद्याधर (कीर पक्षो) बहुरूपिणी विद्या का स्मरण करके व्रती, हजारों जीवों पर दया करनेवाले, निर्विकार शुद्ध दोनों भाइयों को मीठे आम लाकर देता है ॥१-२॥ फलों के स्वाद से सम्पूर्ण क्षुधा तिरोहित हो जाती है । सुख होता है। ठोक है-पुण्य से क्या नहीं होता ॥३॥ उसी समय एक विद्याधर पक्षी ने विनत वदन से (दूसरे) विद्याधर पक्षी से पूछा ।।४।। उसने कहा हे पूज्य ! आम-फल के गुण कहकर/बताकर मेरे मन का संशय दूर करो ॥५|| जिससे मेरे हृदय को सुख प्राप्त हो। ऐसा सुनकर दूसरे विद्याधर ने कहा ॥६॥ सूर्योदय के समय करने योग्य जिस समय दाँत धोता है उस समय पृथिवी पर करूडा (कुल्ला) करते हुए (करके जो) छोटे वृक्ष के पवित्र फल का स्वाद लेता है वह (स्वाद) जब तक मनुष्य के हृदय में रहता है, पोषण करता है और वह मनुष्य नित्य पाँच सौ रत्न उगलता है ॥७-९॥ ___कहा भी है-जिसे सम्पत्ति की प्राप्ति में हर्ष और विपत्ति में दुःख नहीं होता। युद्ध में धैर्य धारण किये रहता है, ऐसे तीन लोक में तिलक स्वरूप पुत्र को विरली माता ही जन्म देती है ॥१॥ गुणों को विरले ही जानते हैं, विरले स्वामी ही निर्धन को पालते हैं, पर कार्य करनेवाला विरला होता है और पर-दुःख में दुःखी विरला ही होता है ।।२।।
जो दूसरे आम्र वृक्ष के फल का स्वाद लेता है वह सातवें दिन शीघ्र राज्य पाता है ॥१०॥ अपनी इच्छा के अनुसार अचल राज्य-लक्ष्मी को
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