SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ अमरसेणचरिउ जोइ वि कुमरहं तेउ पराकमु । णउ सहि सक्कइ दुट्ठी विक्कमु ॥३॥ चितइ दुट्ठी एय दो भायर । मारामि णिव-पास दुहायर ॥४॥ किंचि दोसु इणि अलिउ पयासउ। रूसइ ण रदइ वेयं इणिसउ ॥५॥ इणि अगइ-महु सुय किं किजहिं । जिउ सुज्जगइ-तेय पयंगहि ॥६॥ इणि तेयं कहु उप्पम दिज्जइ । अइवलबंडई सवक ण पुज्जइ ॥७॥ यउ चिति वि अच्छइ घर सचित । कुमरहं दुह-सल्लिय दुक्खपत्त ॥८॥ इत्थंतरि सूरसेणु गउ सेवहिं। संपत्तउ गजपुर-णिव-केहिं ॥९॥ तहं केर करि वि पहु आउ घरि । तह दुटु-धरणि मणि सल्लु सरि ॥१०॥ स[सु]त्तय सिज्जासणि मउण लए। णउ वोलइ पिच्छइ कहु ण तए ॥११॥ तहि अवसरि राणउ गिहि पइछ । णउजोवइणिय पिय-पाण इठु॥२॥ रइ-थाणि ण दिट्ठी अलिउखाणि। तहि बुज्झि वि गउ जिहं थिय अयाणि १३ तहिं पास वइट्ठउ रहसचित्तु । उट्ठावइ कर-गहि कहि हियत्तु ॥१४॥ के कारणि सुती रूसि देवि । जो तुह दुहयालउ हणउ सो वि॥१५॥ णउ उत्तर किंपिण देइ तहु । हुय वंको मउणई भणइ णहु ॥१६॥ पुणु वार-वार पहु विण्णवेइं । ललिक्खरेण तहु मणु-हरेइ ॥१७॥ कह-कहव मणाविय पय-पडेवि । क्यणहं वि रयणा-संघडे वि ॥१८॥ घत्ता अक्ख हे महु राणी, पहुह पहाणी, _णिय-णिय परिहउ सिग्घु महु। जो तुझुण भावई, वहु दुह-दावई, हणइ तुरंतउ वइरि-तुहु ॥२-५॥ [२-६] तं सुणि विणई णिसुणि परमेसर । जहि दिण केर गयउ महु मणहर ॥१॥ गजपुरणयर-सामि-पासह वर । तहि दिण लग्गिय ते पावह घर ॥२॥ अमरसेणि-वइसेणि दुहंकुर । अइ वंकाणण-वयण विणिर्ल्डर ॥३॥ खंडणु सोलु मज्झु रयणु वरु। णउ मण्णहि तुह संक सुयण णिरु ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy