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________________ द्वितीय परिच्छेद १०९ दोनों क्रम से विजयादेवी के गर्भ से ऐसे उत्पन्न हुए-आये मानों नारायण और प्रतिनारायण, लव और कुश या इन्द्र और प्रतीन्द्र अवतरित हुए हों ॥१८-२०|| घत्ता-पूर्वभव में जिनेन्द्र की पूजा करने से पृथिवी पर उन भाइयों ने उत्तम जन्म पाया। गर्भ में नौ महीने रहकर वे युगल रूप में होकर उत्पन्न होते हैं ।।२-२॥ [२-३ ] [ अमरसेन-वइरसेन का नामकरण, जन्मोत्सव एवं शैक्षणिक वर्णन ] राजा के कामदेव के समान सुन्दर पुत्रों का शुभ दिन, शुभ मुहूर्त और पुण्य लग्न के समय में जन्मोत्सव मनाया गया। राजमहल की स्त्रियों के द्वारा मंगल गीत गाये गये ॥१-२।। राजद्वार पर तोरण बाँधे गये, भाटों की स्त्रियां विरुदावलियाँ गाती हैं ।।३।। भाँति-भाँति की ध्वनि करनेवाले बहवाद्य बजाये गये । विलासिनी स्त्रियाँ अति सराहना करती हुई नाचती हैं ।।४।। दुःखी और दरिद्री जनों का दान से पोपण किया गया। वस्त्र और आभूषणों से आत्मीयजन या सज्जन संतुष्ट किये गये ।।५।। ( राजा ने ) बडे पुत्र का नाम अमरसेन और छोटे पुत्र का नाम वइरसेन रखा ॥६।। सभी जन धन्य हैं-कहते हैं। ( इस प्रकार के बालक पुण्यात्मक आशीषों से बढ़ते हैं ।।७।। माता-पिता स्नेह प्रगट करते हैं। स्वजन बालकों के मुस्कराते मुंह से अनुरंजित होते हैं ।।८॥ स्त्रियों के द्वारा हाथों हाथ ले जाये जाते हैं। बालक माता के स्तन से खेलते हैं ।।९।। इसके पश्चात् मातापिता के द्वारा परामर्श किया गया, अधिक लाड़ में उन्हें अधिक दोष ज्ञात हुये ॥१०॥ (अतः ) उन्होंने शीघ्र शुभ महर्त और शुभ योग में विधि पूर्वक (बालक) उपाध्याय को समपित किये ।। १।। इसके पश्चात् बहु ज्ञान के भण्डार उपाध्याय ने बालकों को ग्रहण करके यश-श्री की कामना से ( पढ़ाया ) ।।१२।। घत्ता-उन्होंने अ इ आदि समस्त स्वर, कवर्ग-चवर्ग-टवर्ग-तवर्ग और पवर्ग, समस्त छन्द, अक्षर, भेद, संस्कृत और प्राकृत की विधियाँ, देशी समस्त लिपियाँ और गणित का विस्तार तथा संकोच प्रकट किये। सिखाये ॥२-३॥ [अमरसेन-वइरसेन का विद्याभ्यास एवं वनक्रीड़ा-वर्णन ] गुरु के द्वारा भव्य उन कुमारों को समझाये गये ( काव्य के विविध ) अंग-लक्षण, अलंकार, विभक्ति, लिंग, सन्धि, समास, व्याकरण और भाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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