SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ अमरसेणचरिउ कुलधम्म सुट्ठ अध्पणउं पालि । परधम्मकुचच्चानिव टालि ॥११॥ वरि किउ भलउ चंडालकम्मु । परनिंद न भासिसि परहमम्मु ॥ १२ ॥ परमप्पउ लब्भइ अपचति । संसारु अनंतउ परहचित ॥ १३ ॥ घत्ता वसु- मूलगुणई पालंतयहं सत्त वसण- परिहारु जि किज्जइ । सम्मदंसण णिम्मलेण, पढमी पडिमा एम धरिज्जइ ॥ १८॥ [ १-१९ ] इम जाणि सुकरि जो होइ जुत्तु । दूसयइ-राग - दोसिहि न चित्तु ॥ १ ॥ इणि सत्त-नरय-संगम-विचारि । जुआदिक सत्तइ विसण वारि ॥२॥ वावीस अब्भक्ख- अनंतकाय । वत्तीस वि वज्जहु बहु अपाय ॥३॥ महु-मज्ज - मंस -‍ - मक्खन म भक्खि । गज्जर-मूलादि- कलोट- रक्खि ॥४॥ सूरण-पिंडालू-पिंड जाति | वेयंगण वज्जहु जिमणु-राति ॥५॥ 'घोल - वडा संधाणउ अथाण | विदलन्न केम जीमइ सुजाण ॥ ६ ॥ पाउ भणंति जोइ ॥७॥ महदुक्खें पच्च माण ॥८॥ आम वि दहियई विदलन्नु होइ । तं असणे पावेण णरयवासउ वि याण । तत्थ वि अणच्छाणिउ-पाणी-रहाण-घोणि । संपज्जइ जलयर - जीव- जोणि ॥९॥ हिडाम मिल्हि नवकार मंतु । करि पच्चखाण नियमह संजुत्त ॥१०॥ पडिकमणउं सामाइकु संभालि । पोसह वइ विकथाति टालि ॥११॥ वावियइ जुधणु सतह खित्ति । संवलि जाणोवउ पे परति ॥१२॥ वे वियइ जु वलि वोवाहि गाहि । इणि भवि परभवि तिणि आहि-वाहि ॥ १३ करि करुण अलिउ मण (जीउ ) वुल्लि । परधणु-तिणु परतिय-माय तुल्लि | १४ धन-धन्नखित्त-परिगह - पमाणु । परिहरि कूडातुल कूडमाणु ॥१५॥ इउ भासिउ जिणवरि धम्म-लेसु । आराहि जेम तुट्टइ किलेसु ॥ १६ ॥ लद्धी सामग्गी पुन्न जोगि । पम्माउ करिसि तउ पडिसि सोगि ॥ १७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy