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________________ ८८ अमरसेणचरिउ दुक्खियउ करतउ धंम देहु । हो इति म करि पुग्गल [वि] सणेहु।१३। अप्पणउ नाहि भाडइ वहति । वाहियइ धम्मि तं चेव तं तु ॥१४॥ समुदाउ न संवल न वि मुहुत्तु । जिउ करत पयाणु न सउण सत्तु ॥१५॥ नवलंत चलाऊ लहइ कोइ । लब्भइ जइ उट्ठइ रोइ रोइ ॥१६॥ वयरीवसि पडिया समरखित्ति । कायर परि मरत न होइ कित्ति ॥१७॥ भडिवाउ सुजसु-भरु मह-महंतु । स लहिज्जइ सूरत्तणि मरंतु ॥१८॥ संसारि नही अप्पणउ कोइ। लहणा देणा लगि मिलिउ जोइ ॥१९॥ जिउ पडिउ कुडवावत्तिगत्ति । सूयरहमाहि मन्नइ पहुत्ति ॥२०॥ जइ कालि कुडवउ-संकलाउ । तउ सोगिहि संकल उत्तरीउ ॥२१॥ लइ संजम अप्पउ तारि-तारि । आसा-वासिणि मन पडि संसारि ॥२२॥ घत्ता सुकुडंव-कज्जि वहु पाउ जिउ, करइ ण अप्पउ चेयइ। वहु सीउण्हइ तावइ सहए, णउ अप्पुमरणुमणि वेयइ ॥१-१६॥ [१-१७] अधिकारिउ-जीविउ-कम्मराउ । पेरिउ करंतु पडि यउ अवाइ ॥१॥ वंदिहरि-कुडंवइ वंदि घालि । रक्खियउ न सक्कइ वालि हालि ॥२॥ गल-संकल-घरणी-वाहु-दंड ।पगि पुत्तु-नेह वेडी-पचंड ॥३॥ हथकडग-मित्त-पिय-माय-भाय ।जिउ जडिउ ण सक्कइ वलि वि पाय ।।। झडिपडियति संकल कम्म जोगि । जइ तुट्ट वंदिजण वयणु लोगि ॥५॥ पुरिसत्तणु करि-अरिहंतु-णहि । कायरपण पडिसि म वलिअ गाहि ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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