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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
१७७ के समान बताया है। माता पर देव के समान श्रद्धा करनी चाहिए। प्रस्तुत बात के द्वारा आचार्य जिनदत्तसूरिजी ने सद्गृहस्थ को प्रेरणा दी है कि वह माता-पिता की सेवा करनेवाला बने।
___ उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि १२ वीं सदी के समय समाज में परिवार की स्थिति कैसी थी, गृहस्थों का जीवन कैसा था। आचार्य श्री ने उनके हित के लिए बहुत उपयोगी शिक्षाएं भी प्रदान की हैं।
'उपदेश रसायन रास' ग्रन्थ की अन्तिम गाथा के द्वारा, ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए आचार्यश्री अपना नाम “जिणदत्त” और “उपदेशफल'' बताते हुए कहते हैं कि
इय जिणदत्तुवएसरसायणु इहपरलोयह सुक्खह भायणु। कण्णंजलिहिं पियंति जि भव्वई
ते हवंति अजरामर सव्वई ।। ८० ।। फलश्रुति बतलाते हुए कहते है कि:
आचार्य जिनदत्त सूरि द्वारा रचित उपदेश रसायन सञ्जीवनी बूटी के समान है। इस माधुर्यमिश्रित उपदेश को जो भी कर्णरूपी अंजलि से पान करेगा वह इस लोक और परलोक में भी अजर अमर हो जायेगा।
उपरोक्त विवरण के आधार पर मूल्यांकन के रूप में कहा जा सकता है किआचार्यश्रीने कहा है कि :
(१) उपदेशरसायनरास के माध्यम से कुपथगामी और सुपथगामी व्यक्तियों की दुर्दशा का विवरण, धार्मिक नाटकों का अभिनय, युगप्रधान गुरु के लक्षण, संघ के लक्षण, समान धर्म वालों के साथ ही वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना आदि बातों का स्पष्टीकरण अच्छी तरह से किया है।
(२) पापाचरण युक्त व्यक्तियों की दुर्दशा का भी वर्णन खूब अच्छी तरह किया है। और यह भी बताया है कि ऐसे व्यक्ति कभी भी सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं कर सकते।
(३) कुटुम्ब निर्वाह के सभी पक्षों का समुचित निरूपण किया है।
(४) संसार की नश्वरता तथा सामाजिक विषमता का निरूपण भी अच्छी तरह से किया है।
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