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अनुक्रम
प्रकरण १. आचार्य जिनदत्तसूरि के समय के पश्चिम भारत का विहंगावलोकन
( तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति २-७, सामाजिक परिस्थिति ७ - १०, साहित्यक्षेत्र १०-१३, कलाजगत १३-१६, धार्मिक परिस्थिति१६-१८)
प्रकरण २. जैन धर्म की स्थिति एवं खरतरगच्छ का उद्भव और विकास ( चैत्यवास १९ - २६, आचार्य वर्धमानसूरि २६-२७, आचार्य जिनेश्वरसूरि २७-३४, आचार्य अभयदेवसूरि ३५ - ४०, आचार्य जिनवल्लभसूरि ४०-४५ )
प्रकरण ३. आचार्यश्री जिनदत्तसूरिजी का जीवनचरित्र
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पृ. १ - १८
पृ. ४६-६५
(जन्म और दीक्षा ४७-४८, मुनिदीक्षा ४८-४९, आचार्यपद ४९, विहार एवं जिनधर्म का प्रचार-प्रसार ४९-५०, चैत्यवास का विरोध और विधिधर्म का प्रचार ५०-५२, जैनधर्मी श्रावकों की वृद्धि, ५३ - ५४, राजप्रतिबोध ५४-५६, युगप्रधानपदप्राप्ति ५६-५७, शिष्यपरंपरा ५७-५८, स्वर्गवास ५८-५९, आज तक समाज में प्रतिष्ठा ५९, गुरुदेव के चमत्कार - चित्तोड में वज्रस्तंभ - बिजली स्तंभितपाँच पीर और ब्यावन वीरों को वस में सरना - चौंसठ योगिनियाँ इत्यादि ६० - ६३, जिनदत्तसूरि के समकालीन आचार्य ६४-६५ )
XIII
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पृ.१९-४५
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