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उपमा अलंकार :
उदाहरण :
गई है।
तित्थवइ - वद्धमाणो जिणेसरो दिणेसरो णेसरु व्व हय तिमिरो । जिणचंदोऽभयदेवो पहुणो जिणवल्लहा जे अ ।। १०
तीर्थपति वर्द्धमान जिनेश्वर को तिमिर हरण करनेवाले दिनेश्वर की उपमा दी
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६. " श्रुतस्तव "
प्रस्तुत कृति युगप्रधान दादासाहब द्वारा रचित है । इसके रचनाकाल की सुनिश्चित तिथि के विषय में भी कुछ सामग्री प्राप्त नहीं है। अन्य कृतियों की भाँति इसके बारे में भी यह तो निश्चिततापूर्वक कहा ही जा सकता है कि इसका रचनाकाल बारहवीं शताब्दी होगा क्योंकि दादासाहब का युगप्रधान का समय १२ वीं शताब्दी ही है।
भाषा के विषय में तो लोककल्याण एवं लोकभोग्य भाषा प्राकृत को ही स्वीकार किया गया है । भाषा में सामान्य सरल एवं तत्कालीन प्रचलित शब्दों को विशिष्ट स्थान दिया गया है। शब्दों को कठिन सामासिकता से दूर रखा गया है। इसमें कुल २७ गाथाएँ है । यह कृति मूल प्रकाशित भी है। इसका मूल एवं अनुवाद परिशिष्ट में क्रमांक २ पर दिया जा रहा है।
२३
श्रुतस्तव नाम से विदित होता है कि इसमें गणधरों द्वारा विरचित शास्त्रों के नामों का उल्लेख किया गया है।
सयमित्थ पसत्था जा पयासिया अत्थओ गणहरेहिं ।
रचना की है।
२३.
युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
विहिया दुवालसंगी सपरेसि सुत्तहि विहिया ॥ ४ ॥
तत्पश्चात् द्वादशांगी को अर्थरूप में प्रकाशित करके गणधरों ने सूत्र से उसकी
लिखते हैं
जैन धर्म के अंग उपागों का वर्णन करके चौदह पूर्वों का वर्णन करते हुए
युगप्रधान जिनदत्तसूरि - श्री अगरचंदजी नाहटा पृष्ठ- १०५.
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