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________________ 114 तड़फ़ रहा है अगर मेरे पर भी कोई हमला करें तो मेरी भी यही स्थिति होगी। इस निर्दोष बच्चे की मैंने हत्या कर दी। उसी स्थान पर खड़ा-खड़ा प्रायश्चित्त करने लगा। आज दिन तक मैंने कितने जीवों की हिंसा कर उन्हें कष्ट पहुंचाया होगा और आज तो मैंने पांच-पांच जीवों की हिंसा कर दी लेकिन जरा भी मन में ख्याल नहीं आया कि मैं क्या कर रहा हूँ। इन्हीं विचारों के साथ उसने संयम अंगीकार कर लिया और उसी शहर के चारों दरवाज़ों पर एक-एक माह तक ध्यान में खड़ा रहा! व्यक्ति इधर ऊधर से आते-जाते उस पर पत्थरों और लाठियों के प्रहार करते रहते और बोलते कि आज दिन तक तो लोगों की हत्याएं की, धन लूटा,आज साधु का वेश धारण करके ढोंग रच रहा है। वही दृढ़प्रहारी जो पहले क्रूर स्वभाव का था अब समता और सरलता पूर्वक उन उपसर्गों को सहन करने लगा। मन में जरा भी उनके प्रति बदले की भावना नहीं आई, बल्कि यही सोचता रहा,चिन्तन करता रहा कि यह प्रहार तो बहुत कम है। मैंने तो आज दिन तक कितने ही जीवों की हत्याएं की कितनी आत्माओं को कष्ट पहुंचाया है ! इन्हीं विचारों में लीन रहते-रहते उसको केवलज्ञान प्राप्त हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि कहां तो वह जीवों की हिंसा करके नरक का बन्ध कर रहा था। लेकिन बाद में प्रायश्चित्त करके मोक्ष का टिकिट प्राप्तकर लिया !"कर्मे सुरा जे धर्मे सुरा'। दृढ़प्रहारी कर्म में सूरवीर था तो धर्म में भी सूरवीर बना / पहले उसकी निंदा होती थी और आज सभी उसकी समता की अनुमोदना करने लगे।आशय यही है कि व्यक्ति यदि किये हुए कर्मो का प्रायश्चित्त कर लेता है तो वह पड़ता हुआ भी ऊपर उठ सकता है।प्रायश्चित्त करने के उपाय हम सद् गुरुओं से प्राप्त कर सकते है। गुरु ही एक ऐसा साधन है जो हमें किए हुए कर्मो का प्रायश्चित्त करने का मार्ग दिखाते है। ऐसी स्थिति में गुरु हमारे लिए सर्चलाईट का काम करते हैं। किये हुए कर्मो का प्रायश्चित्त करने से कर्मो की निर्जरा होती चली जाती है और व्यक्ति का आत्म कल्याण हो जाता है। ***** Jain Education InternationBrivate & Personal Usewamy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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