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________________ २५६ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन हस्तामलक सिद्धि थी सारीदूर नहीं कुछ लगते ॥ *** महावीर अनगार धर्म के लिए स्वतः उद्यत हैं। त्याग मोह सम्पूर्ण परिग्रहजीवन में ही.रत हैं। *** कवियों ने प्रबन्ध काव्यों मे हिन्दी, संस्कृत छन्द के अलावा अडिल्ल आदि प्राकृत छन्दों का भी सुंदर निर्वाह किया है। छन्दबद्ध रचनाओं के उपरान्त परीक्षण करने पर अनुभव हुआ कि कवियों ने कहीं-कहीं शास्त्रीय छन्दों का प्रयोग नहीं भी किया है। यद्यपि काव्य का पठन करने पर उनके अन्त्यानुप्रास मिलते हैं। उनके अक्षरों और मात्राएँ भी प्रचलित शास्त्रीय छन्दों के समान ही लगती है। परन्तु उनके गण लघु-गुरु आदि नहीं मिलते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि सोलह या अट्ठाईस मात्रा का सरसीय या हरिगीतिका का छन्द है या चौपाई या सोरठा है। परन्तु इन छन्दों की कसौटी पर ये स्खलित मालूम होते हैं, लेकिन इनकी प्रवाहमयता और गति में, काव्य के पठन में या रसनिष्पत्ति में कोई बाधा नहीं आती है। इसीलिए ऐसे छन्दों को वजनी छन्द कहा जाता है। अर्थात् जो पद जिस छन्द के निकटवर्ती लगता है वह उसीका वजनीछन्द कहा जाता है । कुछ उदाहरण प्रस्तुत है देखिए। यह छन्द चौपाई के निकट है लेकिन चौपाई नहीं है जो देव विमान दिखा तुमको उसका पल यही विचारा है। वह जीव तुम्हारे गर्भाशयमैं सुर पुर त्याग पधारा है। * ** or om "जयमहावीर' : कवि माणकचन्द, सप्तम् सर्ग, पृ.७६ वही, अष्टम् सर्ग, पृ.७९ “परमज्योति महावीर" : कवि सुधेशजी, सर्ग-४, पृ.१३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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