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________________ ॥ प्रथमो विमर्शः॥ ५५ आ सत्यावीश योगोनी मध्ये जेटला मुष्ट योगो ने, तेमां पण जेटली पुष्ट धनी , ते कह - व्यतिपातवैधृताख्यौ सकलौ परिघस्य पूर्वम: च । प्रथमः पादोऽन्येष्वपि विरुषसंज्ञेषु हातव्यः ॥७३॥ अर्थ-व्यतीपात अने वैधृत नामना योगो समग्र (श्राखा ) तजवा खायक , परिघनो पहेलो अर्ध नाग त्याज्य बे, अने बाकीना विरुप (अशुन) नामवाळा योगोमां प्रथम पाद वर्जवा योग्य वे. या योगोनो अर्ध जाग तथा एक पाद पंचांगमां खखेली घमीउने अनुसारे समज़वा. विरुष्ट नामवाळा योगो विष्कल, गंम, अतिगंम, शूळ, व्याघात तथा वज्रपात जाणवा.. उपर जे प्रथम पाद वर्जवानुं कडं ने, तेमां बीजो प्रकार कहे .त्यजेछा पञ्च विष्कंन्ने षट् तु गंमातिगंगयोः। घटिकाः सप्त शूले तु नव व्याघातवज्रयोः ॥ ४ ॥ अर्थ-अथवा तो विष्कंन योगमां पहेली पांच घमी तजवी, गंग ने अतिर्गममां पहेली उ उ घमी, शूळमां प्रथमनी सात घमी अने व्याघात तथा वज्र योगमां प्रथमनी नव नव घमी वर्जवा योग्य . . विष्कनादिक मुष्ट योगोमां एकार्गलवेध नामना योगनी उत्पत्ति थाय ने ते कहे/जे. एकार्गलः कुयोगेषु चन्डे च परस्परात् । गते सानिजिदोजर्द त्याज्यः पादान्तरो न चेत् ॥५॥ अर्थ-मुष्ट योगने दिवसे अन्निजित् सहित अठ्यावीशे नक्षत्रोमांना विपम नत्रमा परस्पर (सामसामा) चंज अने सूर्य रह्या होय तो ते एकार्गल कहेवाय , ते तजवा योग्य केपरंतु जो एकार्गल योग पादनां श्रांतरावाळो न होय तोज तजवा लायक जे. ' था एकार्गल योग मुष्ट योगोमां थाय ने एम कर्तुं , माटे प्रीति, आयुष्मान् विगेटे शुन योगमां ते थतो ज नथी एम सूचवन कर्यु जे. कुयोग उतां पण श्रा योगनो संलव क्यारे थाय ? ते उपर चंज अने सूर्यनी स्थिति दावी . श्रहीं अनिजित् खखेलु होवाथी अठ्यावीश नक्षत्रो जाणवां. या प्रमाणे लत्ताना श्लोकमां पण समजवं. 'श्रा श्लोकनो समग्र नावार्थ श्रारीते जे.-आगल कहेवामां आवे ए रीते एकार्गख चक्र करी तेमां अनुक्रमे ठाठ्यावीश नत्रो लखवां, पगी जो चंषधी सूर्य अने सूर्य थी चंद्र एक बीजाश्री निलम नत्रे एक ज लीटीमा रहेला होय तो एकार्गल थाय के अने ते सर्व त्रण, पांच, सात, नव इत्यादि पकी नक्षत्र विषम कहेवाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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