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________________ पए ॥प्रथमो विमर्शः॥ "वैशाख तथा ज्येष्ठ मासमां रविवार, पम्वो अने मूळ के उत्तराफागुनी एक ज दिवसे होय तो ते शुज . तथा ग्रीष्म ऋतुमां (वैशाख तथा ज्येष्ठमां) तेरश, शनिवार अने श्रवण नक्षत्र एक ज दिवसे होय तो ते अशुन . ४." "श्रासाढ सावण विश्रा उत्तरत्नद्दवय चंददिण सुह । पाउसि असुहो उ बुहो चउदसि पुवा य नद्दवया ॥ ५॥" "श्राषाढ तथा श्रावण मासमां बीज, उत्तरानाप्रपद अने सोमवार एक ज दिवसे होय तो ते शुज . तथा प्रावृडू ऋतुमां (आषाढ तथा श्रावणमां) बुधवार, चौदश अने पूर्वालाप्रपद एक ज दिवसे होय तो ते अशुन जाणवो. ५." "जद्द व श्रासो मासे सत्तमि सणिवार रोहिणी सफला । वासारते असुहा रवि कत्तिथ पुन्नमासी अ ॥ ६॥" "नादरवा तथा आशो मासमां सातम, शनिवार अने रोहिणी एक ज दिवसे होय तो ते सफळ (शुल) . तथा वर्षा ऋतुमां रविवार, कृत्तिका अने पूर्णिमा एक ज दिवसे होय तो ते अशुल . ६." श्रा बए गाथामां ऋतु अने मासना नाममा विपर्यय बे, कारण के नाममाळा विगेरे ग्रंथोमां आश्विन अने कार्तिक विगेरे बबे मासनी शरद् विगेरे ऋतु कही जे अने अहीं तो कार्तिक अने मार्गशीर्ष विगेरे बबे मासनी ऋतुओ कही . तथा श्रा गाथाश्रोमां शिशिर ऋतु बिलकुल लीधी ज नयी अने वर्षा ऋतु तथा प्रावृडू ऋतु एक ज उतांबे जूदी जूदी लश्ने उ ऋतुनां नाम पूरा का बे. श्रा सर्व विपर्यास ते ग्रंथकर्ताए ज करेखो ठे, माटे तेमनो एवो ज मत हशे एम जणाय बे. हवे मूळ ग्रंथकार रवि योग कहे .योगो रवेर्लात्कृत ४ तर्क ६ नन्द ए, दिग् १० विश्वविंशोशण्डुषु सर्व सिध्यै। आये १ जिया ५श्वहिप न्रु१९सारी १५,राजो१६डुषुप्राणदरस्तु हेयः६१ अर्थ-सूर्यनुं जे नत्र चालतुं होय ते नात्रथी गणतां ते दिवसनुं नक्षत्र जो चोद्यु होय तो चोथो रवि योग जाणवो. हुं होय तो उसो रवि योग, नवमुंहोय तो नवमो, दशमुं होय तो दशमो, तेरमुं होय तो तेरमो अने वीशमुं होय तो वीशमो रवि योग जाणवो. श्राटला रवि योग सर्व सिद्धिकारक बे, एटले के आ योगने दिवसे करेलु कार्य सिख श्राय के; परंतु सूर्यना नदनथी ते दिवसर्नु नत्र पहेलु, पांचमुं, सातमुं, बाग्मुं, अग्यारमुं, पंदर के सोळमुं होय तो ते योग प्राणने हरण करनारो ने तेथी ते सर्व कार्यमां तजवा योग्य वे. ६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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