SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना. पिका, ज्योतिश्चक्र विचार, ज्योतिसार संग्रह, ताजिकसार वृत्ति, तियादि सारणी, पदश जाव जन्म प्रदीप, नरपति जयचर्या विगेरे विगेरे एटला बधाबे के मात्र प्रसिद्ध थोनां पण नामो अत्रे लखतां अति विस्तार थर जाय. आ विषयना ग्रंथो बीजा वेषयोना ग्रंथोनी अपेक्षाए बहु उंग पाया एम कहीएतो ते कांश अतिशयोक्ति नरेलु 'थी, माटे तेवा ग्रंथोनी खास जरुर जणायाथी हालमां श्रा आरंभसिद्धि, लग्नशुद्धि पने दिनशुद्धि नामना त्रण ग्रंथो जाषांतर सहित पावीने प्रसिद्ध कर्या बे. आ श्रारंसिजि नामना मूळ ग्रंथना कर्ता नागें गबना श्रीउदयप्रभदेव सूरि ने. रेक शुनाशुल प्रारंजोनी सिद्धि करनार होवाथी या ग्रंथy "आरंलसिद्धि" ए अन्वर्थ Tम ले. श्रा नाम उपरथीज तेनो विषय समजी शकाय के आ ग्रंथ केवळ मुहूर्त्तनाज वषयवाळो बे. कोइ पण कार्यना मुहूर्त्तनो निश्चय करवा माटे अनेक ग्रंथोनी अपेक्षा मती होवाथी तेना विधानोने अति प्रयास थतो जोश पूज्यपाद श्रीउदयप्रनदेव सूरिए हूर्त्त अने तेने लगता योग, करण, गणित, फळ विगेरे सर्व आपेक्षिक विषयोनो संग्रह प्रा ग्रंथमां करेलो ने, एम टीकाकारे पण प्रारंले पीलिकामा स्पष्ट जाणाव्यु ने, तेथी था 'धनी पहेलां मुहूर्त संबंधी श्रावो को पण ग्रंथ हतो नहीं एम सिद्ध थाय बे. ग्रंथकार श्रीउदयप्रजदेव सूरिए ग्रंथमा पोतानो सत्तासमय, जन्मनूमि, मातापिता, क्षागरु विगेरे कांड पण हकीकत जणावी नथी. तेमज पोते बीजा कया कया ग्रंथो च्या ले १ ए विगेरे कां पण सख्यु नथी, परंतु ग्रंथना प्रारंजमा टीकाकारे पीविकामां णाव्युं ले के “(श्रीवस्तुपाळ नामना) मंत्रीश्वरे श्रीनागें गबना गुरु सत्ज्ञान सत्च्या अने सद्गुणोए करीने शोजता एवा श्रीमान् उदयप्रनदेव सूरिने आचार्यपद पर पन कर्या हता." आ लेखने अनुसारे शोध करतां आ सूरीश्वर संबंधी केटतीक कीकत अन्यान्य ग्रंथोमांथी मळी श्रावी . तेमां श्रीवस्तुपाळचरित्र प्रस्ताव सातमामां ततोऽनेकपुरग्राम-वास्तव्याहतसन्ततिम् । पाहूय बहुमानेन, श्रीधवलक्कपत्तने ॥३६० ॥ श्रीनागेन्गणाधीशै-पिंधा मंत्री मानृताम् । प्रत्यहं कारयामास, सविशेषमहोत्सवम् ॥ ३६१ ॥ उदयप्रनसूरीणां, पूरिताङ्गिमनोरथम् ।। श्रीश्राचार्यपदारोप-प्रतिष्ठां विष्टपाछुताम् ॥ ३६॥ त्रिनिर्विशेषकम् ॥ शतानि त्रीणि सूरीणां, तमुत्सवदिदृदया। समं स्वकीयसंघेन, तदापुमैत्रिवेश्मनि ॥ ३६३ ॥ तेषां सपरिवाराणां, संघपूजामहोत्सवम् । विधिवविदधे मंत्री, विशुचसिचयादितिः ॥ ३६४ ॥ इत्यादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy