SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ दिनशुद्धिः ॥ वेर वर्जवुं, एटले के प्रतिमाना नामनी नाम पावामां नामनी जे योनि होय ते बन्नेने जो परस्पर वेर होय तो तेनुं नाम वर्ज. ए६. ॥ इति नक्षत्रयोनिवैरम् ॥ ed वर्गाष्टक कहे बे. - रुको बिमालसी हो कुक्कुरसप्पो ा मूसगो हरिणो । मेसो naurus कमेण पुण पंचमे वेरं ॥ ७ ॥ वर्ग (सर्वे स्वर ) नो पति गरुम बे । क वर्गनो पति बिलामो बे । च वर्गनो पति सिंह | ट वर्गनो पति कूतरो छे । त वर्गनो पति सर्प बे । प वर्गनो पति जंदर बे वर्ग ( यरलव) नो पति हरण बे । तथा श वर्ग ( श प स ह )नो पति मेष ( घेटो) । अकारादि व वर्गना गरुमादि व स्वामी के तेमने क्रमे करीने पोताना वर्गपतिथी पांच पांच वेर बे. ते वर्गवेर पण वर्जवुं. एg. हवे नाममां रहेलां नक्षत्रना जावने कहे बे. - सिणाइतिनामीए इगनाडिगयं सुहं नवे रिकं । गुरुसी साणं तारा वजित तिपंचसत्तत्या ॥ ए८ ॥ ने प्रतिमा जरावनारना ४७५ श्व विगेरे नव नव नक्षत्रोनी त्रण नामी ( लाइन ) करवी, तेमां गुरु ने शिष्यनुं नक्षत्र एकज नामीमां आव्युं होय तो ते शुज बे. वळी गुरु ने शिष्यनी त्रीजी, पांचमी ने सातमी तारा आवती होय तो ते वर्ज्य बे. एन्. नामीयंत्र स्थापना. - मपूर हे चि स्वावि अज्ये पूज् Jain Education International वे विंशोपक कहे . - सिद्धसागधुररकर वग्र्गके कमुकमिण अविजत्ते । सेस श्रद्धकय लग्नविसो पछिमा खलु अग्गगणं ॥ ए‍॥ सिद्ध (गुरु) ने साधक ( शिष्य ) ना नामना पहला अक्षरनो जे वगाक होय ते बन्ने त्रांकने क्रमे तथा उत्क्रमे ( उलटा सुलटा ) मूकवा, पक्षी तेने वे जाग देवो. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy