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॥आरंसिधि॥ “श्रा पृथ्वी पर शुज अथवा अशुन जे कोई कार्य असाध्य होय ते त्रण घमीना प्रमाणवाळा विष्टिना पुछे करवाश्री सिद्ध थाय ने.” तेनुं पुन्न प्रमाणे कडं .
"दशम्यामष्टम्यां प्रथमघटिकापञ्चकपरं,, हरिद्यौ ११ सप्तम्यां त्रिदश १३ घटिकान्ते विघटिकम् । । तृतीयायां राकासु च गतसविंशैक २१ घटिके,
ध्रुवं विष्टेः पुचं शिवतिथि १५ चतुर्योश्च विगलत् ॥" ____“दशम अने आपमे प्रथमनी पांच घमी पठी विप्टिनुं पुन्च श्रावे , एटले के ते तिथिए विष्टिनो कटिनी बीजी घमीश्री प्रारंल थाय ने, तेथी पांच घमी पनी पुत्र श्रावे श्रने त्यारपली मुख विगेरे कटि पर्यंत अंगो आवे बे. अग्यारश आने सप्तमीने दिवसे हृदयनी ही त्रण घमीथी विष्टिनो प्रारंज थाय , तेथी विष्टिनी तेर घमी गया पी तेर्नु त्रण घमी प्रमाण पुत्र थावे . त्रीज अने पुनमने दिवसे विष्टिनो कंपनी बीजी घमीथी प्रारंन श्राय , तेथी विष्टिनी एकवीश घमी गया पठी तेनुं पुत्र आवे , तथा चोथ अने चौदशने रोज विष्टिनो मुखथी प्रारंज थाय बे, तेथी विष्टि उतरतां बेही त्रण घमी पुछ आवे बे." नत्रा (विष्टि)नो आकार था प्रमाणे कह्यो .
"सर्पिणी वृश्चिकी लषा दिवाराज्योः स्मृता क्रमात् ।
सर्पिण्या वदनं त्याज्यं वृश्चिक्याः पुचमेव च ॥" "दिवसनी जत्रा सर्पिणी कही बे, अने रात्रिनी जत्रा वृश्चिकी (वींबण) कही . तेमां सर्पिणीनु मुख अने वृश्चिकीन पुत्र तजवा योग्य .” था प्रमाणे केटलाक कहे जे. वळी बीजा कोश् एम कहे जे के-“शुक्लपदनी नत्रा सर्पिणी ने अने कृष्णपक्षनी जत्रा वृश्चिकी बे."
अहीं विष्टिनां मुख विगेरे अंगो पांच विगेरे घमीवाळां कह्यांचे ते मात्र व्यवहारथी एटले सामान्य रीते साठ घमीनी तिथि होय तो त्रीश घमीनी थी तिथि श्राय अने ते वखतेज आ कहेखी घमीनी व्यवस्था घटी शके , परंतु तिथि साठ घमीश्री न्यून के अधिक होय त्यारे अर्धा तिथि पण न्यूनाधिक होय. ते वखते मुखादिकनी पांच विगेरे घमी पण न्यूनाधिक थाय बे. दाखला तरीके को तिथि जघन्यथी ५४ घमी होय त्यारे अर्धी तिथि २७ घमीनी होय; माटे विष्टि पण २७ घमीनी होय; तथा कोई तिथि उत्कृष्ट ६६ घमीनी होय त्यारे ३३ घमीनी अर्धी तिथि होय, माटे विष्टि पण ३३ घमीनी होय, ए रीते तिथिर्नु मान मध्यम होय त्यारे विष्टि पण मध्यम प्रमाणवाळी होय . तेथी करीने एक घमीना साठ पळ होवाथी तेने विष्टिनी घमी ३० होवाथी त्रीशे जाग खेतां बे पळ आवे ने, माटे विष्टि त्रीश घमीथी जेटली घमी न्यून के अधिक होर तेटली
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