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________________ प्रस्तावना. ३ जैमी दीक्षा अंगीकार करीने अनेक शास्त्रमां प्रवीणता मेळवी हत्ती से पोताना 15 जवाने गुरु श्राचार्यपद पेलुं जोइने ईर्ष्याने सीधे चारित्रनो त्याग करी तिष्ठानपुरना जितशत्रु राजानो पूज्य पुरोहित थयो हतो. एकदा वराहमिहिरे अमुक काणे कुंमाळु करीने राजाने कर्तुं के या कुंकाळामां आकाशमांथी कामुक वखते बावन कनो मोटो मत्स्य परुशे. ते वखते जत्रबाहु स्वामीए कुंमाळानी बहार पवानुं क ने तोलमां तेथी जंबो परुवानुं करूं. तेज प्रमाणे कुंमाळा बहारज ने बा तोलवाळो ज्यो. त्यारपवी एकदा राजानी राणीए पुत्र प्रसव्यो. तेनी जन्मकुंकळी करीने वराहहिरे कुंवरनुं सो वर्षनुं आयुष्य कह्युं, जज्बाहु स्वामीए बिलामी थकी सातमे दिवसे रण अशे एम कं. ते सांजळी राजाए गाममांथी सर्वे बिलामी उने बहार कढावी छाने चोकसीथी मक्षिकानो पण प्रवेश न थइ शके तेवा एकांत महेलमां ते पुत्रने राख्यो. योगे सातमे दिवसे बारणाना उंबरामां बेठेली धात्रीना उत्संगमां रहेला पुत्रना माथा र धारनी अर्गला पमी, तेथी तेनुं मरण नीपज्युं. ते जाणी राजाने अत्यंत शोक थयो. बीते गुरु पासे जइने पूच्छं के अपना कहेवा प्रमाणे पुत्रनुं सातमे दिवसे मरण युं, परंतु ते मरण बिलामीथी थयुं नहीं, तेनुं शुं कारण ? गुरुए कहां के धारनी गला उपर बिलामीनुं चित्र बे तेमज अर्गलाने बिलामी कहे बे, तेथी ते बिलामीथीज रथयुं बे. ते सांजळी राजाए ते वातनी खात्री करीने गुरुना ज्ञाननी प्रशंसा करी. श्रा माणे जैन ज्योतिषमा रहेला अपूर्व ज्ञाननी यथार्थता शास्त्रप्रसिद्ध बे. वा विस्तार ज्ञानवाळा ज्योतिष शास्त्रमां आखी खगोळ विद्यानो पण समावेश बे. श्रीसूर्यप्रति ने चंद्रप्रज्ञप्ति विगेरे गणित शास्त्रने आधारे वर्ष, कायन, तु, स, पक्ष, रात्रि दिवस विगेरे काळचक्रनो विजाग नियमित रीते जाणी शकाय बे. तेज तिथि तथा मासनी वृद्धि अने क्षय, ग्रहो, नक्षत्रो, ताराज विगेरेनो उदय, क्र गति ने जुगति, तथा उटकापातादिक उत्पातो आगळथी जाणी शकाय बे, फळप्रतिपादक ग्रंथोने आधारे पृथ्वी पर थता सुकाळ, दुष्काळ विगेरे शुभाशुभ पण जाणी शकाय बे. एक मनुष्यना जन्मादिक काळने या श्रीने तेनी श्राखी जींदगी १ वराहमिहिरे ज्योतिषना विषय उपर वाराहीसंहिता रची छे, ते लोकमां प्रसिद्ध छे. आ भद्रबाहु स्वामी चौद पूर्वधर होवाथी श्रुतकेवळी हता अने तेथी करीने केवळीना जेटली थन करवानी शक्ति हती. तेमणे आचारांग निर्युक्ति, सूत्रकृतांग निर्युक्ति, बृहत्कल्प मूळ तथा तेनी युक्ति, व्यवहार मूळ, आवश्यक निर्युक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति, उत्तराध्ययन निर्युक्ति, पिंड युक्ति, ओघ निर्युक्ति, दशाश्रुतस्कंध मूल तथा तेनी निर्युक्ति, संसक्त निर्युक्ति, उपसर्गहर स्तोत्र तथा योतिषमां भद्रबाहु संहिता अने द्वादश भाव जन्मप्रदीप विगेरे ग्रंथो रच्या छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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