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________________ ३ मूळ ॥दिनशुद्धिः॥ नीचेना यंत्र परथी तारानी संख्या जाणवी. नत्र तारा नक्षत्र तारा | नत्र तारा नत्र तारा अश्विनी ३ पुष्य स्वाति अनिजित नरणी ३ अश्लेषा विशाखा श्रवण कृत्तिका मघा अनुराधा धनिष्ठा रोहिणी ५ पूर्वाफागुनी ५ ज्येष्ठा शतनिषक १०० मृगशीर्ष ३ । उत्तराफागुन | पूर्वानाप्रपद २ श्राओं १ । पूर्वाषाढा उत्तरानाजपद ५ पुनर्वसु प चित्रा १ | उत्तराषाढा ।। रेवती ३२ श्रा प्रमाणे अनुक्रमे नक्षत्रोना परिवारजूत तारानुं प्रमाण जाणवू. तारानी समान संख्यावाळी तिथि पण श्रा नक्षत्रोमां वर्जवा योग्य , एटले के अश्विनी नक्षत्र त्रीजने दिवसे होय तो ते वय॑ने. रोहिणी नक्षत्र पांचमने दिवसे होय तो ते वय॑ ते. इत्यादि. अहीं शतनिषकनी सो तारा तथा रेवतीनी बत्रीश तारा ने, तेथी तेने तिथिनी संख्या पंदरे नाग लेतां बाकी दश अने बे रहे , माटे शतभिषा नक्षत्र दशमने दिवसे होय अने रेवती नक्षत्र बीजने दिवसे होय तो ते वय॑ बे एम समजवु. १०-१ए. अभिजित् नत्रनी समज तथा तेनी आवश्यकताज-खा अंतिमपायं सवणपढम घमिश्र चन अनीशविई। लत्तोवग्गहवेहे एगग्गलपमुहकजोसु ॥ २० ॥ उत्तराषाढानो बेझो ( चोथो) पाद अने श्रवणनी पहेली चार घमी थाटला समय सुधी अनिजित् नत्रनी स्थिति होय , अने लत्ता, उपग्रह, वेध तथा एकार्गल ए विगेरे कार्योमा तेनी जरुर पसे बे. २०. नक्षत्रोना अक्षरोनो यंत्र.चु चे चो ला अश्विनी मि मे मो अश्लेषा लि लु ले लो नरणी म मि मु मे मघा श्रइ उ ए कृत्तिका मोट टि टु पूर्वाफाल्गुनी व वि वु रोहिणी टे टो प पि उत्तराफाल्गुनी वे वो क कि मृगशिर पु ष ण ठ हस्त कु घ ङ आओ पे पो र रि चित्रा के को ह हि पुनर्वसु रु रे रो ता स्वाति. हु हे हो मा पुष्य ति तु ते तो विशाखा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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