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________________ ४५४ ॥दिनशुद्धिः॥ नजानां अंग तथा तेनुं फळ कहे .पण मुग दस पण पण तिथ विहिघडी वयण कंठ उरु नाही। कमि पुछगा य सिकी खय निस्स कुबुकि कलह विजयकरा॥१६॥ विष्टि (ना) पहेली पांच घमी सुधी पोताना मुखमां रहे , त्यारपती वे घमी कंठमां रहे , त्यारपनी दश घमी ऊरुमा रहे , त्यारपनी पांच घमी नानिए रहे ने, त्यारपजी पांच घमी कटीए रहे जे अने बेसी त्रण घमी पुचमां रहे . जो जत्रा मुखमां रही होय ते वखते यात्रादिक शुन्न कार्य करवामां आवे तो कार्यनी सिद्धि थाय केले रही होय तो क्षय ( नाश ) करनारी थाय ने. ऊरुमां रहेली होय तो निर्धन करे , नानिमां रही होय तो खराब बुद्धि करे , कटीमां रही होय तो क्लेश करावे ने अने पुछे रही होय तो विजयने करनारी श्राय जे. १६. हवे करणनी अवस्था बतावे .किंत्थुग्ध सउणि कोलव उन्करण तिन्नि तिनि सुत्ता। तेश्ल नाग चप्पय पण सेस निविठकरणा॥ १७ ॥ किंस्तुघ्न, शकुनि अने कौलव ए त्रण करणो नलेला होय , तैतिल, नाग अने चतुष्पद ए त्रण करणो सूतेलां होय , तथा बाकीनां पांच करणो (बव, बालव, गर, वणिज अने विष्टि ) बेठेलां . १७. ॥ इति करणघारम् ॥ हवे नक्षत्रो कहे .अश्विनी १, नरणी २, कृत्तिका ३, रोहिणी ४, मृगशीर्ष ५, आर्षा ६, पुनर्वसु ७, पुष्य , अश्लेषा ए, मघा १०, पूर्वाफाल्गुनी ११, उत्तराफाल्गुनी १२, हस्त १३, चित्रा १५, स्वाति १५, विशाखा १६, अनुराधा १७, ज्येष्ठा १७, मूळ १ए, पूर्वाषाढा २०, उत्तराषाढा ११, अनिजित् २२, श्रवण २३, धनिष्ठा २४, शतभिषक् २५, पूर्वाजापपद २६, उत्तरालाप्रपद २७ श्रने रेवती २७. था अठ्यावीश नत्रो ने. हवे दरेक नक्षत्रनी केटली तारा होय ? ते कहे जे.तिति पण ति एग चऊ ति ब पण फुपु पणिग एग चल चउरो। ति गार चल चल तिगं ति चउ सयं 5 फुग बत्तीसं ॥ १७ ॥ श्व रिकाणं कमसो परिभरतारामिई मुणेयवा। तारासमसंखागा तिही वि रिकेसु वजिजा ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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