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________________ ॥ श्ररं सिद्धि ॥ "पहेलां श्रीमान् चंद्र कुळने विषे श्री जगच्चंद्र नामना गुरु ( आचार्य ) उत्पन्न या हता के जे तीव्र तपवने तपाचार्यनी ख्याति पाम्या हता. तेमना वंशमां मोटा प्रजाववाळा श्री वरदेवसुंदर नामना गुरु ( श्राचार्य ) थया, अने तेनी पाटरूपी उदयाचळ पर्वतना शिखर उपर श्री सोमसुंदर नामना गुरु नवीन सूर्यरूप थया," कारण के"जानोर्जानुशतानि षोमश वसन्त्येकत्र मास्याश्विने, तु ततोsधा यपि महीमुद्योतयन्ते सदा 1 तस्याहं चरणावुपासिषि चिरं श्रीमत्तपागनुपकोणी विश्रुतसोमसुन्दरगुरोश्चारित्रि चूकामणेः ॥ ए ॥” ४१४ " सूर्य मात्र एक आश्विन मासमांज सोळसो किरणो विलास पामे बे, परंतु जेमना तेथी पण वधारे शिष्यो निरंतर पृथ्वीने उद्योत करे बे ते साधु मां चूकामणि समान, श्री तपा गहना नायक ने पृथ्वी पर प्रख्यात थयेला श्री सोमसुंदर गुरुना वे चरणोनी में चिरकाळ सेवा करी बे." " मारिर्येन निवारिताऽसुरकृता संसूत्र्य शान्तिस्तवं, सूरिः श्रीमुनिसुन्दराजिधगुरुदीक्षागुरुः सैष मे । यस्य श्यामसरस्वतीतिबिरुदं विख्यातमुवींतले, गुर्वी श्रीजयचन्द्रसूरिगुरुरप्याधात्प्रसत्तिं स मे ॥ ६॥" "जेमणे असुरे उत्पन्न करेली मरकी शांतिस्तव रचीने निवारी, तेर्ज या श्री मुनिसुंदर सूरि नामना गुरु मारा दीक्षागुरु बे, तथा जेमनुं श्याम - काळी सरस्वती नामनुं बिरुद पृथ्वी पर प्रसिद्ध बे ते श्री जयचंद्र सूरि नामना गुरुए पए मारा पर मोटी प्रसन्नता धारण करी बे." "साम्प्रतं तु जयन्ति श्री - रत्नशेखरसूरयः । नानाग्रन्थकृतस्तेऽपि पूर्वाचार्यानुकारिणः ॥ ७॥” "हम तो पूर्वना श्राचार्योनी सदृश तथा विविध ग्रंथोने रचनारा ते प्रसिद्ध श्री रत्नशेखर नामना सूरि जयवंता वर्ते बे.” Jain Education International “एतानाचार्यहर्यक्षान्, प्रत्यक्षानिव गौतमान् । वीतमायं स्तुवे स्फीत-श्रीतपागवनायकान् ॥८॥ " जाणे प्रत्यक्ष गौतमस्वामीज होय एवा ने आचार्योने मध्ये सिंह समान श्रा वृद्धि पामेला श्री तपा गहना नायकोनी हुं निष्कपटपणे स्तुति करूं बुं." For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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