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________________ ॥ पञ्चमो विमर्शः॥ ४०ए (हमपचीमां) टचसी तथा तेनी पासेनी ए बबे आंगळी तथा नेत्रना प्रांत लागमां शेष (अंगुठा पासेनी ) वेश्रांगळी राखीने अंतःकरणमां ध्यान करवाथी पृथ्व्यादिक तत्त्वोर्नु ज्ञान अनुक्रमे था प्रमाणे थाय बे.-पीत-पीळो-वर्ण नासे तो पृथ्वी तत्त्व, श्वेत लासे तो जळ तत्त्व, अरुण-रातोनासे तो तेज तत्त्व, श्याम नासे तो वायु तत्त्व अने बिंदु एटले कांइ पण न नासे तो उपाधि रहित आकाश तत्त्व जे एम जाणवू. पीत वर्ण कार्यनी सिधिने कहे , बिंदु तथा श्वेत वर्ण सुखने कहे , संध्या जेवो रातो वर्ण जयने कहे , जमरा सरखी कांतिवाळो श्याम वर्ण हानिने कहे . जीवितमां, जयमां, लालमां, धान्यनी उत्पत्तिमां, खेतीमां, पुत्रने अर्थे, युधना प्रश्नमां तथा जवा आववामां पृथ्वी अने जळ तत्त्व शुल, अग्नि अने वायु तत्त्व शुक्ल नथी. पृथ्वी तत्त्वमां कार्य करवाथी अर्थनी सिद्धि स्थिर थाय बे, अने जळ तत्त्वमा कार्य जलदी सिद्ध थाय ने, एम जाणवू. वळी"पोमशाङ्कलिका पृथ्वीर जलं तु बादशाङ्गलम् । तेजश्चाष्टाङ्गुलं ३ वायुश्चतुरङ्गलको मतः ॥१॥ नैकमप्यङ्गलं व्योम ५ वहतीति विनिर्णयः।" " पृथ्वी तत्त्व सोळ बांगळ वहे ने १, जळ तत्त्व बार श्रांगळ वहे जे २, तेज तत्त्व आठ आंगळ वहे ने ३, वायु तत्त्व चार आंगळ वहे । अने आकाश तत्त्व एक श्रांगळ पण वहेतुं नथी. ए प्रमाणे निर्णय करेलो ." एटले के ज्यारे नासिकानो वायु नासिकानी बहार वहतो बतो सोळ आंगळ सुधी आकाशने व्यापे ने त्यारे पृथ्वी तत्त्व बे एम सर्वत्र जाणवू. अथवा तो आ वाक्यनी बीजी रीते पण व्याख्या थर शके , ते आ प्रमाणे-दोष रहित लग्नने विषे पृथ्वी अने जळ तत्त्वनी गति होय त्यारे एवो संबंध करवो, एटले के शुद्ध लग्न होय तोपण ज्यारे पृथ्वी के जळ तत्त्व होय त्यारे शुन्न कार्य करवू, परंतु अग्नि, वायु के आकाश तत्त्वमां करवू नहीं. कडं बे के" पृथ्वी राज्यं १ जलं वित्तं २ वह्निर्हानिं ३ समीरणः। नगं गगनं दत्ते पञ्चतां ५ सर्वलग्नतः॥१॥" "सर्व कार्यना लग्नने विषे पृथ्वी तत्त्व लीधुं होय तो ते राज्यने श्रापे १, जळ तत्त्व धनने आपे बे २, अग्नि तत्त्व हानि करे ३, वायु तत्त्व जग उपजावे धने आकाश तत्त्व मरण आपे बे ५. श्रा तत्त्वोनी उत्पत्तिनो प्रकार था प्रमाणे बे.१ पीत वर्ण पृथ्वी तत्त्व छे, तेमां कार्य करवाथी ते कार्य सिद्ध थाय छे एम सर्वत्र जाणवू. आ० ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002765
Book TitleArambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages524
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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