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॥पञ्चमो विमर्शः॥
४.३ जो त्रिकोण अने केन्जमा रहेला वळवान् ग्रहो सर्वे क्रूर होय तो राजा क्रूर थाय बे, सर्वे शुन ग्रहो होय तो राजा सौम्य थाय ने, अने जो मिश्र होय एटले के केटलाक ग्रहो क्रूर होय अने केटलाक सौम्य होय तो साधारण एटले अत्यंत क्रूर के सौम्य न घाय. वळी "विधुगुरुशुक्रः सार्केः" आ श्लोक जे उपनयनना अधिकारमा कह्यो जे ते अहीं पण जाणवो. हवे अनिषेकमां मोटा दोषने कहे .
चन्ने सौम्येऽपि वाऽन्यस्मिन् रिपु ६ रन्ध्र ७ स्थिते है।
क्रूरैर्विलोकिते मृत्युरनिषिक्तस्य निश्चितः ॥ ३ ॥ अर्थ-चंड अथवा बीजो कोइ पण सौम्य ग्रह बजे के आपमे स्थाने रह्यो होय अने तेना पर क्रूर ग्रहोनी पूर्ण दृष्टि पमती होय ते वखते अनिषेक करेला राजानु अवश्य मरण थाय . अहीं "विलोकिते" एटले पुष्ट (पूर्ण) दृष्टिए जोयेलो एवो अर्थ बे.. । अनिषेकनी वेळाए तनु (१)विगेरे स्थानोमांपाप ग्रहो रहेला होय तेनुं फळ कहे जे.रोगी तनु १ स्थैरधनो धनाश्न्त्यगैःखी च पापैर्नृपतिस्त्रिकोण ए–५ गैः । पदच्युतोऽस्ता एम्बु ४ गतैर्मृति जस्थितैररूपायुराकाश१० गते स्त्वकर्मकृत्य
अर्थ-अभिषेक वखते पाप ग्रहो जो पहेला स्थानमा रह्या होय तो ते राजा रोगी रहे बे, बीजा अने बारमा स्थानमा रह्या होय तो निर्धन थाय बे, त्रिकोण (ए-५) मां रह्या होय तो दु:खी श्राय बे, सातमे के चोथे रह्या होय तो पदन्रष्ट (राज्यघ्रष्ट) थाय बे, बाग्मे रह्या होय तो अप आयुष्यवाळो थाय बे, अने दशमा स्थानमा रह्या होय तो ते अकर्मकर थाय जे. अकर्मकर एटले अकिंचित्कर अर्थात् उद्यम रहित थाय बे.
इति वक्तव्यता येयं नूपालस्यानिषेचने ।
थाचार्यस्यानिषेकेऽपि सा सर्वाप्यनुवतेते ॥५॥ अर्थ-या प्रमाणे राजाना अनिषेकमां जे श्रा वक्तव्यता ( व्यवस्था ) कही ले ते सर्वे आचार्यना अनिषेकमां पण जाणवी.
श्लोकमां अपि शब्द होवाथी बीजा पण ( उपाध्यायादिक) पदना स्थापनने विषे पण श्रा व्यवस्था जाणवी, तेश्री करीने राज्याभिषेक अने सूरिपदादिकमां था प्रमाणे कुंमळी सिद्ध थाय .
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