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॥ आरं सिद्धि ॥
पक्ष तथा कृष्णपक्षनी अपेक्षाए बन्नेनुं बळ लेवुं एवो अर्थ करवो नहीं. दग्धा अने रिक्ता विगेरेने त्याग करवाथी तिथिनी शुद्धि कहेवाय बे, सौम्य वार सेवाथी वारनी शुद्धि थाय बे, क्रूर ग्रहे आक्रमण करेला नक्षत्र विगेरेनो त्याग करवाथी नक्षत्रनी शुद्धि जावी, तथा दुष्ट योग ने उपयोगने वर्जयाथी योगनी शुद्धि थाय बे. "न्याय""श्रीजे, बहे" अहीं उपलक्षणथी धन ( बीजुं ) स्थान पण सौम्य ग्रहोवरेज सहित हो जोइए. सामर्थ्यथी एम पण जाय बे के श्रावमं ने बारमुं ए स्थान शून्य होय तो ते सारांबे, कारण के ते बे स्थानोमां शुभ के अशुभ कोइ पण ग्रह रह्यो होय तो ते निष्ट आपनारज बे.
जन्मर्काडुपचयने स्थिरेऽथ शीर्षोदयेऽथवा जवने । सौम्यैर्विलोकितयुते न तु पापैर्जूपमनिषिश्चेत् ॥ ८० ॥
अर्थ - जन्मनी राशिथी उपचयस्थानमां, अथवा स्थिर लग्नमां, अथवा शीर्षोदयी ( माथी उदय पामनार ) लग्नमां, अने ते लग्न सौम्य ग्रहोए जोयेल तथा युक्त होय, पण क्रूर ग्रहोए दृष्ट के युक्त न होय तेवा लग्नमां राजानो अभिषेक करवो शुभ बे.
जे पुरुषने निषेक करवानो होय तेनी जन्मनी राशिश्री उपचयस्थानमा रहेलुं लग्न होय, अथवा स्थिर राशिनुं लग्न होय, अथवा शिर्षोदयी राशिवालुं लग्न होय. " न तु पापैः " एटले के क्रूर ग्रहोए जोयल अथवा युक्त न होय.
मार्कयोख्या ३ य ११ गयोर्गुरौ तु सुखा ४ म्बर १० स्थे नृपतिः स्थिरश्रीः । या त्रिकोणो-५दयगे १ सुरेज्ये, शुक्रे नमः १०स्थे क्षितिजे रिपु ६ स्थे ॥ ८१ ॥
अर्थ - शनि ने सूर्य त्रीजे के गीयारमे स्थाने रह्या होय, छाने गुरु चोथे के दशमे स्थाने रह्यो होय तो ते ( राज्यानिषिक्त ) राजानी लक्ष्मी स्थिर थाय बे, अथवा तो गुरु नवमा, पांचमा के पहेला स्थानमा रह्यो होय, शुक्र दशमा स्थानमां होय ने मंगळ हे स्थाने होय तोपण ते राजा स्थिर लक्ष्मीवाळो थाय बे. अहीं यमनो अर्थ शनि बे.
निषितो बलीयो जिर्महैः केन्द्र त्रिकोणगैः ।
पापैः शुभैः सौम्यो मित्रैः साधारणो जवेत् ॥ ८२ ॥
क्रूरः
अर्थ – केन्द्र ने त्रिकोणमां रहेला बळवान् क्रूर ग्रहोए अभिषेक करायेलो राजा कर थाय बे, तेवाज शुभ ग्रहोए करीने सौम्य ने मिश्र ग्रहोए करीने साधारण थाय बे.
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